प्रदीप बच्चन (ब्यूरो चीफ)
बलिया (यूपी) जनपद के मुरली छपरा ब्लॉक में महिला आरक्षण की मंशा के ठीक उलट तस्वीर सामने आती जा रही है। ग्रामीणों ने बताया कि कई महिला ग्राम प्रधान खुद गांव में नहीं रहतीं, बल्कि शहर में रहकर बच्चों की पढ़ाई-लिखाई में व्यस्त रहती हैं। इस दौरान पंचायत की जिम्मेदारी उनके पति या अन्य पुरुष प्रतिनिधि संभालते हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार गांव के लोगों का आरोप यह भी है कि महत्वपूर्ण दस्तावेज—निवास प्रमाण पत्र, आय प्रमाण पत्र सहित कई सरकारी कागज़ों पर महिला प्रधान की जगह पुरुष प्रतिनिधि ही सिग्नेचर करते हैं, जबकि कानूनन यह अधिकार केवल निर्वाचित प्रधान को है। ग्रामीणों का कहना है कि पंचायती व्यवस्था महिला नेतृत्व को मजबूत करने के लिए बनाई गई थी, लेकिन यहां कागज पर महिला और जमीन पर पुरुष ही शासन करते दिखाई दे रहे हैं।
इस मामले पर जब जिला पंचायत राज अधिकारी (DDO) से बात की गई, तो उन्होंने कहा कि “मामला संज्ञान में नहीं था। वैसे नियुक्त प्रधान को ही सभी कार्य करने चाहिए। नियम के खिलाफ किसी भी प्रकार की हस्ताक्षर प्रक्रिया स्वीकार्य नहीं है।”
DDO ने यह भी बताया कि खंड विकास अधिकारी (BDO), मुरली छपरा को पत्र जारी कर तत्काल जांच करने और रिपोर्ट देने का निर्देश दिया जाएगा।
स्थानीय लोग पूछ रहे हैं कि यदि महिला प्रधान गांव में उपस्थित ही नहीं हैं, तो पंचायत की योजना, विकास कार्य और सरकारी प्रमाण पत्र किस आधार पर जारी किए जा रहे हैं? यह सवाल पंचायत व्यवस्था की पारदर्शिता पर भी बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।
मामले की जांच होने पर कई पंचायतों में चल रही ‘प्रॉक्सी मॉडल सरकार’ का खुलासा होना तय माना जा रहा है।
