हाईकोर्ट के आदेश भी बेअसर! चारागाह–तालाब–कब्रिस्तान की सरकारी भूमि पर कब्जा बरकरार, जिम्मेदार मौन
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हाईकोर्ट के आदेश भी बेअसर! चारागाह–तालाब–कब्रिस्तान की सरकारी भूमि पर कब्जा बरकरार, जिम्मेदार मौन

 


गोंडा। जनपद के कर्नलगंज तहसील अंतर्गत ग्राम लोहसा परगना पहाड़ापुर स्थित गाटा संख्या 89/3 (क्षेत्रफल 0.408 हेक्टेयर) जो कि राजस्व अभिलेखों में चारागाह/तालाब/कब्रिस्तान के रूप में दर्ज है, उस पर वर्षों से अवैध कब्जा बना हुआ है। हैरानी की बात यह है कि तहसील स्तर से लेकर माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद खंडपीठ लखनऊ तक के स्पष्ट आदेश होने के बावजूद आज तक न तो बेदखली और न ही क्षतिपूर्ति की वसूली हुई। प्रकरण में अतिचारी सतीशचन्द्र पुत्र पारसनाथ, निवासी ग्राम लोहसा, को भूमाफिया प्रवृत्ति का बताते हुए ग्रामीण जगनाथ मिश्रा ने जिलाधिकारी गोंडा को प्रार्थना पत्र सौंपा है। शिकायत के अनुसार उक्त भूमि पर अवैध कब्जे के विरुद्ध धारा 122(बी) जेडए एक्ट एवं धारा 122(ख) उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम के तहत 27 अप्रैल 2015 तथा 27 फरवरी 2021 को तहसील स्तर से बेदखली व जुर्माने के आदेश पारित किए गए थे। इतना ही नहीं, धारा 67 के अंतर्गत राजस्व व पुलिस की संयुक्त टीम भी गठित की गई, लेकिन वर्षों बीत जाने के बावजूद आदेश कागजों से आगे नहीं बढ़े। न कब्जा हटाया गया, न सरकारी भूमि को मुक्त कराया गया और न ही एक रुपये की क्षतिपूर्ति वसूली गई। मामले की गंभीरता को देखते हुए माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद खंडपीठ लखनऊ ने भी संज्ञान लेते हुए धारा 460 उत्तर प्रदेश राजस्व नियमावली के तहत अतिचारी के विरुद्ध बेदखली एवं क्षतिपूर्ति वसूली के स्पष्ट आदेश पारित किए। बावजूद इसके, ज़मीनी स्तर पर प्रशासनिक तंत्र की निष्क्रियता सवालों के घेरे में है। सबसे चौंकाने वाला तथ्य यह है कि उपजिलाधिकारी कर्नलगंज द्वारा 10 जून 2025 को पुनः आदेश जारी कर राजस्व व पुलिस टीम गठित करने के निर्देश दिए गए, लेकिन उसके बाद भी कोई ठोस कार्रवाई सामने नहीं आई। इससे यह सवाल उठ रहा है कि क्या भूमाफिया कानून से ऊपर हैं? या फिर प्रशासनिक संरक्षण में सरकारी भूमि का खुला दुरुपयोग हो रहा है? ग्रामीणों का आरोप है कि चारागाह जैसी सार्वजनिक उपयोग की भूमि पर अवैध कब्जा बने रहने से गांव के हित प्रभावित हो रहे हैं, लेकिन जिम्मेदार अधिकारी आंख मूंदे बैठे हैं। अब शिकायत कर्ता ने जिलाधिकारी से मांग की है कि माननीय उच्च न्यायालय के आदेश का तत्काल अनुपालन कराते हुए दोषी अधिकारियों की जवाबदेही तय करते हुए प्रश्नगत सरकारी भूमि से बेदखली व क्षतिपूर्ति वसूली कराई जाय। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि तहसील के आदेश 2015 और 2021 से अब तक लागू क्यों नहीं हुए? हाईकोर्ट के निर्देश भी प्रशासन पर असर क्यों नहीं डाल पाए? गठित टीमों ने आखिर अब तक क्या कार्रवाई की? अगर अब भी कार्रवाई नहीं हुई, तो यह मामला केवल भूमि कब्जे का नहीं बल्कि प्रशासनिक लापरवाही और संभावित मिलीभगत का गंभीर उदाहरण बनकर सामने आएगा।



गोण्डा से ब्यूरो रिपोर्ट शिव शरण

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