लखनऊ: 25 सितम्बर 2025
दीनदयाल उपाध्याय राज्य ग्राम्य विकास संस्थान, बख्शी का तालाब, लखनऊ द्वारा संस्थान के महानिदेशक एल० वेंकटेश्वर लू के संरक्षण व प्र0अपर निदेशक सुबोध दीक्षित के मार्ग निर्देशन में, संस्थान प्रांगण में, पं० दीन दयाल उपाध्याय जी की जन्म-जयन्ती के शुभ अवसर पर, उनकी विशालकाय स्थापित प्रतिमा पर संस्थान के समस्त अधिकारियों/कार्मिकों तथा विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों में प्रतिभाग कर रहे प्रतिभागी अधिकारियों एवं विशिष्ट अतिथि वार्ताकारों द्वारा माल्यार्पण किया गया
उप मुख्यमंत्री श्री केशव प्रसाद मौर्य द्वारा दिये गये निर्देशों के क्रम मे यहां पर पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जीवन दर्शन पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया।संस्थान के बुद्धा सभागार में पं० दीन दयाल उपाध्याय जी के जीवन दर्शन, राष्ट्र प्रेम तथा उनके अप्रतिम एकात्म मानववाद दर्शन पर , संस्थान पर आयोजित हो रहे विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों में वार्ता प्रदान करने हेतु उपस्थित विषयगत वार्ताकारों तथा विशिष्ट अतिथि वार्ताकारों द्वारा अपने-अपने दृष्टिकोण से युग पुरुष पं० दीन दयाल उपाध्याय जी की जीवन शैली, राष्ट्र भक्ति तथा सामाजिक और राजनीतिक स्थितियों एवं उनके अद्वितीय राष्ट्रवाद पर विचार प्रकट किए गए।
संस्थान पर आयोजित हो रहे विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों यथा - " अग्नि आपदा प्रबंधन" एवं ग्रामीण आजीविका मिशन कार्यक्रम के अन्तर्गत, " लोक-ओ एस तकनीकी शैली आधारित" विषयक प्रशिक्षण कार्यक्रमों के प्रमुख प्रतिभागियों द्वारा भी अपने विचार प्रकट किए गए।
विशिष्ट अतिथि वार्ताकारों यथा - इस्कॉन संगठन के आध्यात्मिक गुरु दिव्य मिताई दास एवं भारत चरित्र निर्माण संस्थान, नई दिल्ली के संस्थापक अध्यक्ष राम कृष्ण गोस्वामी द्वारा पं० दीन दयाल उपाध्याय जी के वैचारिक दर्शन एवं मिशन कर्मयोगी के घटकों को परस्पर समाहित करते हुए प्रासंगिक एवं उपयोगी व्याख्यान दिए गए।
संस्थान के प्र0अपर निदेशक सुबोध दीक्षित द्वारा संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए बताया गया कि आज हम यहाँ पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के एकात्म मानववाद दर्शन पर विचार करने के लिए एकत्रित हुए हैं। यह दर्शन केवल राजनीतिक या आर्थिक विचार नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों का प्रतिफल है।
पंडित दीनदयाल जी का मत था कि मनुष्य केवल शरीर नहीं है, बल्कि वह शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा का समन्वित रूप है। जब तक हमारे समाज और व्यवस्थाएँ इन चारों पहलुओं के विकास को समान रूप से महत्व नहीं देंगी, तब तक वास्तविक प्रगति संभव नहीं है। यही कारण है कि उन्होंने एकात्म मानववाद की अवधारणा प्रस्तुत की, जिसमें व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के बीच संतुलन और समरसता पर बल दिया गया।
उनका यह दर्शन पश्चिम के पूंजीवाद और साम्यवाद दोनों से भिन्न है। पूंजीवाद केवल व्यक्ति को प्राथमिकता देता है, जबकि साम्यवाद केवल समाज को। पंडित जी ने स्पष्ट किया कि व्यक्ति और समाज परस्पर विरोधी नहीं हैं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं। अतः विकास का मार्ग वह होना चाहिए जो मानवता को जोड़ने वाला हो, न कि तोड़ने वाला।
पंडित जी का अंत्योदय का सिद्धांत हमें यह सिखाता है कि किसी भी समाज या राष्ट्र की सच्ची प्रगति तब होती है, जब उसके अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति तक समृद्धि और अवसर पहुँचें। वे यह मानते थे कि सत्ता का उद्देश्य केवल शासन करना नहीं, बल्कि समाज की सेवा और राष्ट्र के उत्थान का साधन होना चाहिए।
आज, जब हम आत्मनिर्भर भारत, सामाजिक समरसता और नैतिक मूल्यों की आवश्यकता की बात करते हैं, तब पंडित दीनदयाल जी का दर्शन अत्यंत प्रासंगिक हो जाता है। उनका संदेश हमें यह याद दिलाता है कि प्रगति केवल भौतिक लाभ तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में उजाला लाने वाली प्रगति चाहिए।
अध्यक्षीय उद्बोधन के अन्तर्गत महानिदेशक संस्थान एल० वेंकटेश्वर लू द्वारा प्रतिभागियों को सम्बोधित करते हुए बताया कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय और उनका "एकात्म मानववाद" दर्शन
पंडित दीनदयाल उपाध्याय विचारक और राजनेता थे। उन्होंने भारतीय संस्कृति और जीवन दर्शन पर आधारित एक नई वैचारिक दिशा दी, जिसे “एकात्ममानववाद” कहा जाता है। यह दर्शन भारतीय परंपरा, संस्कृति और जीवन-मूल्यों से निकला हुआ है और पश्चिमी भौतिकवादी विचारधाराओं से अलग है।
एकात्म मानववाद के मुख्य बिंदु
समग्र दृष्टि – इसमें मनुष्य को केवल आर्थिक प्राणी नहीं माना गया, बल्कि उसका शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास समान रूप से आवश्यक बताया गया।
भारतीय संस्कृति पर आधारित – यह दर्शन भारतीय जीवन पद्धति, धर्म, नैतिकता और सामाजिक समरसता को केंद्र में रखता है।
विकास का संतुलन – इसमें कहा गया कि केवल उद्योग, पूँजी या उपभोक्तावाद के आधार पर समाज का विकास अधूरा रहेगा। वास्तविक विकास वह है, जिसमें व्यक्ति, समाज और प्रकृति तीनों के बीच संतुलन बना रहे।
अंत्योदय का सिद्धांत – समाज के सबसे अंतिम और कमजोर व्यक्ति तक विकास और समृद्धि का लाभ पहुँचना चाहिए।
मानव मात्र की एकता – यह विचारधारा सभी मनुष्यों को एकात्म मानती है। किसी भी प्रकार का वर्ग, जाति या भेदभाव इसका हिस्सा नहीं है।
कार्यक्रम को राज्य मद्यनिषेध अधिकारी आर एल राजवंशी जी द्वारा भी सम्बोधित किया गया। सम्पूर्ण कार्यक्रम का मंच संचालन संस्थान के सहायक निदेशक राजीव कुमार दूबे द्वारा किया गया तथा समस्त विशिष्ट अतिथि वार्ताकारों, प्रतिभागियों एवं महानिदेशक संस्थान को प्र0अपर निदेशक सुबोध दीक्षित द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया।
कार्यक्रम के आयोजन एवं प्रबंधन के दृष्टिगत उपनिदेशक डॉ० नीरजा गुप्ता, सरिता गुप्ता, आर के मल्ल तथा सहायक निदेशक डा० राज किशोर यादव, डा० सत्येन्द्र कुमार गुप्ता, संजय कुमार, आपदा प्रबंधन सलाहकार कुमार दीपक , समस्त संकाय सदस्यों तथा सम्बन्धित कार्मिकों का उल्लेखनीय व सराहनीय योगदान रहा ।