प्रदीप बच्चन (ब्यूरो चीफ)
बलिया (यूपी)जयप्रकाश नगर के मुरली छपरा विकास खण्ड अंतर्गत ग्राम पंचायत कोडरहा नौबरार में पंचायत कार्यों की पारदर्शिता पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। ग्रामवासी सुरेंद्रनाथ सिंह पुत्र राज नारायण सिंह ने वर्ष 2021 से 2025 तक ग्राम सभा में हुए निर्माण एवं विकास कार्यों की जानकारी जन सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत मांगी थी, लेकिन नियमानुसार 30 दिन के भीतर सूचना देना तो दूर, आठ महीने बीतने के बाद भी कोई जवाब तक नहीं दिया गया। पत्रकार अजीत कुमार सिंह ने हमारे वरिष्ठ संवाददाता-प्रदीप बच्चन को वॉट्सएप के माध्यम से जानकारी दी है कि सुरेंद्रनाथ सिंह ने दिनांक 23 जनवरी 2025 को पंचायत सचिव व संबंधित अधिकारियों से लिखित सूचना मांगी थी, जिसमें उन्होंने
वित्तीय वर्ष 2021-22 से 2024-25 तक कराए गए खड़ंजा व मिट्टी कार्य, सीसी रोड निर्माण कार्य का विवरण, निर्मित शौचालयों की सूची (नाम-पता सहित)। 15वें वित्त आयोग एवं अन्य योजनाओं से कराए गए समस्त कार्यों की सूची। ग्राम सभा की बैठकों की कार्यवाही व प्रस्ताव की प्रतियां जैसी अहम जानकारियां मांगी थीं। परंतु, सूचना का अधिकार कानून के तहत अनिवार्य 30 दिनों की समयसीमा समाप्त होने के बाद भी किसी प्रकार की सूचना प्रदान नहीं की गई।
प्रशासनिक चुप्पी पर सवाल
जब प्रथम अपील भी बेअसर रही, तब श्री सिंह ने मामले को लेकर उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग, लखनऊ में द्वितीय अपील दाखिल की। आयोग ने मामले को गंभीरता से लेते हुए श्री सिंह को 15 सितंबर 2025 को व्यक्तिगत रूप से आयोग के समक्ष उपस्थित होने के लिए नोटिस जारी किया है। सूचना नहीं दिए जाने को लेकर स्थानीय जनता में भी रोष है। ग्रामीणों का आरोप है कि पंचायत में वर्षों से भ्रष्टाचार और पक्षपात का बोलबाला है, लेकिन जब कोई नागरिक जवाब मांगता है, तो उसे टाल दिया जाता है।
क्या कहते हैं कानून?
आरटीआई अधिनियम 2005 के तहत, कोई भी नागरिक सरकारी योजनाओं, कार्यों और खर्च की जानकारी मांग सकता है और संबंधित अधिकारी को वह जानकारी 30 दिनों के भीतर अनिवार्य रूप से देनी होती है। ऐसा न करने पर संबंधित अधिकारी पर वित्तीय दंड और अनुशासनात्मक कार्यवाही का प्रावधान है।
क्या होगा आगे?
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि राज्य सूचना आयोग इस मामले में क्या फैसला लेता है। क्या दोषी अधिकारियों पर जुर्माना लगेगा? क्या ग्रामवासियों को उनके अधिकारों की जानकारी मिल पाएगी? या फिर पारदर्शिता की बात केवल कागज़ों तक ही सीमित रह जाएगी?