गोंडा-हलधरमऊ बाल विकास परियोजना कार्यालय पर लटका मिला ताला, जिम्मेदार नदारद
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गोंडा-हलधरमऊ बाल विकास परियोजना कार्यालय पर लटका मिला ताला, जिम्मेदार नदारद

 


शुक्रवार दिन में साढ़े 11 बजे तक न सीडीपीओ ड्यूटी पर दिखी न कर्मचारी

लापरवाही, मनमानी और भ्रष्टाचार चरम पर।


गोंडा। शासन की मंशा और जिला प्रशासन के निर्देशों को ठेंगा दिखाते हुए बाल विकास परियोजना कार्यालय हलधरमऊ में शुक्रवार को सुबह सवा 11 बजे तक ताला लटका मिला, जबकि कार्यालय समय शुरू हुए घंटों बीत चुके थे। न बाल विकास परियोजना अधिकारी (सीडीपीओ) उपस्थित थीं, न ही अन्य जिम्मेदार कर्मचारी। कार्यालय परिसर में सन्नाटा पसरा रहा और जरूरी कार्यों से आई महिलाओं, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं व लाभार्थियों को बैरंग लौटना पड़ा। स्थानीय लोगों के अनुसार, यह कोई पहली घटना नहीं है। लापरवाही, मनमानी और कथित भ्रष्टाचार यहां की पहचान बनते जा रहे हैं। समय पर कार्यालय न खुलना, फाइलों का अटकना, आंगनबाड़ी केंद्रों के निरीक्षण में औपचारिकता, पोषण सामग्री व योजनाओं के निष्पादन में ढिलाई, और शिकायतों का निस्तारण न होना—ये सभी बातें लगातार सवाल खड़े कर रही हैं। सूत्रों का दावा है कि जिम्मेदार अधिकारी के कथित रसूख के चलते उच्चाधिकारियों की नजर इस कार्यालय पर नहीं पड़ रही, या पड़ भी रही है तो कार्रवाई कागजों तक सिमटकर रह जाती है। यही कारण है कि शासन और जिला प्रशासन के स्पष्ट आदेशों का असर जमीन पर नहीं दिखता। समय-समय पर जारी निर्देशों के बावजूद कार्यालय की कार्यसंस्कृति में कोई सुधार नजर नहीं आता।

ग्रामीणों का कहना है कि मातृ-शिशु कल्याण, पोषण अभियान, टीकाकरण समन्वय और आंगनबाड़ी सेवाओं से जुड़े काम सीधे तौर पर प्रभावित हो रहे हैं। लाभार्थियों को बार-बार चक्कर काटने पड़ते हैं, जबकि जवाबदेही तय करने वाला कोई नहीं। शिकायत करने पर भी समाधान की जगह टालमटोल ही मिलता है। सबसे गंभीर सवाल यह है कि जब कार्यालय समय में बंद मिले और अधिकारी नदारद हों, तो निरीक्षण और मॉनिटरिंग का दावा कैसे सही माना जाए? क्या यह प्रशासनिक उदासीनता है या फिर संरक्षण की छाया? यदि यही हाल रहा, तो योजनाओं का लाभ कागजों में सिमटकर रह जाएगा। अब जरूरत है कि जिला प्रशासन त्वरित संज्ञान लेकर जिम्मेदारी तय करे, कार्यालय समय का कड़ाई से पालन कराए, औचक निरीक्षण हो और लापरवाही पर ठोस कार्रवाई की जाए। वरना सवाल यही रहेगा—जब ताले लटकते रहेंगे, तो योजनाएं कैसे चलेंगी?

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