राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय में हिंदी के विकास में भोजपुरी, अवधी, ब्रज एवं बुंदेलखंडी के योगदान पर राष्ट्रीय संगोष्ठी
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राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय में हिंदी के विकास में भोजपुरी, अवधी, ब्रज एवं बुंदेलखंडी के योगदान पर राष्ट्रीय संगोष्ठी

 


राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय में हिंदी के विकास में भोजपुरी, अवधी, ब्रज एवं बुंदेलखंडी के योगदान पर राष्ट्रीय संगोष्ठी 

20/03/2025

उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय में गुरुवार को साहित्य अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में हिंदी के विकास में भोजपुरी, अवधी, ब्रज एवं बुंदेलखंडी भाषा के योगदान पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार की अध्यक्षता करते हुए उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सत्यकाम ने कहा कि भाषा विभिन्न संस्कृतियों के बीच और अपनी संस्कृति के भीतर भी सेतु का काम करती है। इन्हें दीवार बनाये जाने का जो प्रयत्न किया जाता है वह किसी भी भाषा व संस्कृति के लिए लाभदायक नहीं है। इसी अवधारणा को स्थापित करने के लिए हिंदी के विकास में भोजपुरी, अवधी, ब्रज एवं बुंदेलखंडी भाषा के योगदान पर यह राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की जा रही है। विश्वविद्यालय के अटल प्रेक्षागृह में आयोजित सेमिनार में कुलपति प्रोफेसर सत्यकाम ने उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री की भूरि भूरि प्रशंसा करते हुए और कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए कहा कि इन भाषाओं को विधानसभा की कार्यवाही में शामिल किया जाना एक स्वागत योग एवं अग्रगामी कदम है। इससे न केवल हिंदी का विकास होगा बल्कि उत्तर प्रदेश की सभी भाषाओं की जड़ें मजबूत होंगी। उन्होंने भाषाओं के सरलीकरण पर जोर दिया।

राष्ट्रीय संगोष्ठी के मुख्य अतिथि संस्कृत के प्रकांड विद्वान प्रोफेसर हरिदत्त शर्मा ने कहा कि संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है और यह सभी भाषाओं और बोलियों को एक दूसरे से जोड़ती है। क्षेत्रीय भाषाएं लोकजीवन से जुड़ी होती हैं और ऋतुओं के अनुसार सुंदर गीत अवधी, भोजपुरी, ब्रज भाषा एवं बुंदेली में सुनने को मिलते हैं। 

विशिष्ट अतिथि सरस्वती पत्रिका के संपादक रवि नंदन सिंह ने कहा कि बोली के विकास के बिना भाषा का विकास नहीं हो सकता। अवधी, भोजपुरी, ब्रजभाषा एवं बुंदेली हिंदी से अलग नहीं हैं। वह भी हिंदी का एक स्वरूप हैं। उन्होंने कहा की भाषा वही सशक्त होती है जो स्थानीय भाषाओं को समावेशित कर ले। हिंदी इसी तरह की भाषा है।


इससे पूर्व विषय प्रवर्तन करते हुए काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर प्रभाकर सिंह ने कहा कि किसी भी भाषा के विकास में बालियों का योगदान अहम है। भाषा को समझने के लिए लोक को समझना होगा और संगीत की भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका है।

अतिथियों का स्वागत साहित्य अकादमी के श्री अजय शर्मा ने किया। संचालन डॉ त्रिविक्रम तिवारी एवं धन्यवाद ज्ञापन प्रोफेसर एस कुमार ने किया।

राष्ट्रीय संगोष्ठी के पहले दिन भोजपुरी का विकास एवं अवधी का विकास पर दो तकनीकी सत्र आयोजित किए गए। जिसमें प्रमुख रूप से डॉ सत्य प्रकाश पाल, डॉ प्रदीप कुमार, प्रोफेसर अजीत कुमार सिंह, डॉ सत्य प्रकाश त्रिपाठी, श्री रवि नंदन सिंह, अजीत सिंह आदि ने व्याख्यान दिया।

 इस अवसर पर श्रेयश शुक्ला एवं सान्हवी शुक्ला एवं उनकी टीम ने भोजपुरी, अवधी, ब्रज एवं बुंदेली में लोकगीत प्रस्तुत किया।

राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन शुक्रवार को होगा। समापन सत्र के पूर्व ब्रजभाषा का विकास एवं बुंदेलखंडी का विकास पर विशेष सत्र आयोजित किए जाएंगे।


डॉ प्रभात चन्द्र मिश्र 

जनसंपर्क अधिकारी

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