रिपोर्ट-----मनोज तिवारी अयोध्या
डॉ0 राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, अयोध्या में स्थापित श्री ऋषभदेव जैन शोध पीठ में “अयोध्या महात्म्य (तेरहवीं शताब्दी ई0 से इक्कीसवीं शताब्दी ई0 तक)” शीर्षक पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें मुख्य रूप से लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो0 अमर सिंह, अंतर्राष्ट्रीय रामकथा संग्रहालय के पूर्व निदेशक प्रो0 एस0 एन0 उपाध्याय, प्रो अनूप कुमार, प्रो0 कविता सिंह, डॉ संजय चौधरी, डॉ0 रवीन्द्र कुमार वर्मा, डॉ0 अनूप पांडेय, डॉ0 राजेश सिंह, डॉ0 अवध नारायण, डॉ0 दिवाकर त्रिपाठी, डॉ0 सतीश कुमार सिंह आदि ने प्रतिभाग किया। संगोष्ठी की शुरुआत में सर्वप्रथम सभी वक्ताओं अतिथियों एवं प्रतिभागियों के आगमन के पश्चात मुख्य अतिथि के द्वारा माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पांजलि अर्पित करते हुए दीप प्रज्ज्वलित किया गया। तत्पश्चात संगोष्ठी में ऋषभदेव जैन शोध पीठ के सह- आचार्य डॉ0 देव नारायण वर्मा द्वारा उपस्थित सभी अतिथियों का अंगवस्त्र एवं स्मृति चिह्न देकर स्वागत किया गया। अतिथियों के स्वागत के उपरान्त विश्वविद्यालय की छात्राओं द्वारा कुलगीत की प्रस्तुति की गई। इसके उपरान्त ऋषभदेव जैन शोध पीठ के सह- आचार्य डॉ0 देव नारायण वर्मा द्वारा अपने संबोधन में ऋषभदेव जैन शोध पीठ की प्रगति आख्या प्रस्तुत करने के साथ साथ सभी अतिथियों, शिक्षकों, विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों का स्वागत किया गया। तत्पश्चात लखनऊ विश्वविद्यालय के सेवानिवृत् आचार्य प्रो0 अमर सिंह ने संगोष्ठी के शुरुआत में अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया। अपने संबोधन में सर्वप्रथम अयोध्या का ऐतिहासिक, पुरातात्विक, धार्मिक, आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व को बताते हुए अयोध्या महात्म्य में जैन धर्म के विभिन्न पहलुओं को रेखांकित करते हुए कहा कि अयोध्या सभी धर्मों के लिए महत्वपूर्ण स्थल है, न केवल सनातन धर्म के लिए बल्कि जैन धर्म के अनुयायियों के लिए भी यह अत्यन्त पवित्र स्थल है। उन्होंने बताया कि अयोध्या में ही जैन धर्म के पाँच तीर्थंकरों का जन्म हुआ था। तीर्थंकर ऋषभदेव, अजीतनाथ, अभिनंदननाथ, सुमतिनाथ, अनन्तनाथ तथा धर्मनाथ ने अयोध्या में जन्म लेकर इस नगरी को जैन धर्मावलम्बियों के लिए पूज्यनीय बनाया। आदि तीर्थंकर भगवान श्री ऋषभदेव ने अयोध्या की धरती से ही असि, मसि, कृषि, विद्या, वाणिज्य एवं शिल्प का उपदेश देकर सम्पूर्ण विश्व को विकसित करने का मूलमन्त्र दिया। इसी क्रम में इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो0 अजय प्रताप सिंह ने अपने उदबोधन में अयोध्या महात्म्य कि विषय में बताते हुए कहा कि भगवान राम के नाम के बिना अयोध्या के महत्व की चर्चा प्रारम्भ ही नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि अयोध्या में जन्मे भगवान श्रीराम ने सम्पूर्ण विश्व को मर्यादा और आचरण का पाठ पढ़ाया जिसे आज हम सभी को आत्मसात करना है।
उन्होंने भगवान श्रीराम के द्वारा जीवन के सभी पहलुओं पर स्थापित किए गए सिद्धांतों के बारे में विस्तार से बताया। इसी क्रम में प्रौढ़ शिक्षा विभाग के प्रो0 अनूप कुमार ने अयोध्या के महात्म्य के अंतर्गत अयोध्या की त्याग, तपस्या, वैराग्य तथा पुरातन संस्कृति के बारे में सभी को बताया उन्होंने रामायण से जुड़े सभी पात्रों के त्याग और समर्पण की चर्चा की। तत्पश्चात श्री रामकथा संग्रहालय के पूर्व निदेशक प्रो0 एस0 एन0 उपाध्याय ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि अयोध्या और भगवान श्रीराम एक दूसरे के पर्याय हैं, बिना श्रीराम के अयोध्या की कल्पना ही नहीं की जा सकती है उन्होंने श्री राम के आदर्शों को पर चलने के लिए सभी का आह्ववाहन किया। उसके बाद साकेत महाविद्यालय से संगोष्ठी में उपस्थित प्रो0 कविता सिंह ने अयोध्या में जैन धर्म की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा, कि अयोध्या नगरी सभी धर्मों के लिए पवित्र है। यहाँ सनातन धर्म के अलावाँ जैन एवं बौद्ध धर्म का भी विकास हुआ है। जैन धर्म के ६ तीर्थंकरों ने अयोध्या नगरी में जन्म लेकर अयोध्या को अनादितीर्थ के रूप में प्रतिपादित किया। प्रो0 सिंह ने अयोध्या में स्थित जैन धर्म के विभिन्न मंदिरों एवं टोंक के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने सभी जिनालयों की वास्तुकला तथा उसमे स्थापित तीर्थंकरों की प्रतिमाओं को मूर्तिकला के अनुसार व्याख्या कर उनके महत्व को बताया। इसी क्रम में रमाबाई राजकीय महिला महाविद्यालय, अम्बेडकरनगर के सहायक आचार्य डॉ0 रविन्द्र कुमार वर्मा एवं डॉ0 अनूप पांडेय द्वारा भी अयोध्या महात्म्य से जुड़े अपने-अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये गए। कार्यक्रम में मुख्य रूप से डॉ0 अवध नारायण, डॉ0 राजेश सिंह, डॉ0 श्याम बहादुर, डॉ0 प्रतिभा देवी, डॉ0 प्रतिभा सिंह, प्रो0 मनीष सिंह डॉ नवीन तिवारी तथा छात्र- छात्राएँ मौजूद रहीं।संगोष्ठी का संचालन महिला अध्ययन केन्द्र की डॉ0 स्नेहा पटेल द्वारा किया गया तथा सभी उपस्थित अतिथियों को धन्यवाद ज्ञापन डॉ0 आलोक कुमार मिश्रा द्वारा किया गया।अंत में संगोष्ठी का प्रथम सत्र का राष्ट्रगान के गायन से सम्पन्न हुआ। 01 घंटे के अन्तराल के उपरान्त संगोष्ठी के द्वितीय सत्र में विभिन्न शोधार्थियों के साथ आवासीय परिसर के इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के डॉ0 राजेश सिंह एवं डॉ0 अवध नारायण द्वारा भी शोध पत्र प्रस्तुत किया गया।

