प्रयागराज: ऐसे किशोर, जिन्होंने कानून का उल्लंघन किया है, उनकी पहचान का खुलासा किसी भी आदेश में नहीं होना चाहिए। ऐसे किशोर अथवा बच्चों की पहचान का खुलासा करना उनकी निजता और गोपनीयता का उल्लंघन है। यह बात इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए कही। कोर्ट ने हाईकोर्ट की रजिस्ट्री को मौजूदा मामले में किशोर आरोपी की पहचान को सभी रिकॉर्डों से हटाने का निर्देश दिया।
यह आदेश जस्टिस संजय कुमार पचौरी ने किशोर न्याय बोर्ड और स्पेशल जज पॉक्सो एक्ट बागपत के आदेशों को चुनौती देने वाली याचिका पर दिया। याची ने अपने पिता के जरिए याचिका दायर कर जमानत अर्जी खारिज करने को चुनौती थी। कोर्ट ने कुछ शर्तों के साथ किशोर को जमानत भी दे दी। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ‘मौजूदा मामले में आक्षेपित फैसले और आदेश में किशोर की पहचान का खुलासा किया गया है। यह उसकी निजता और गोपनीयता का उल्लंघन है। साथ ही शिल्पा मित्तल बनाम एनसीटी दिल्ली, (2020) 2 एससीसी 787 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय कानून के खिलाफ है। जिसमें यह माना गया था कि किशोर की पहचान का खुलासा नहीं किया जाएगा।’किशोर के नाम को सभी रिकॉर्डों से छुपाने का निर्देश कोर्ट ने इस मामले में आदेश में कहा कि पक्षकारों के मेमो में किशोर के नाम का खुलासा किया गया है। रजिस्ट्री को किशोर के नाम को वाद सूची के साथ मामले के सभी रिकॉर्डों से छुपाने का निर्देश दिया जाता है। ताकि शिल्पा मित्तल में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार नाम और पहचान का खुलासा नहीं किया जा सके। कोर्ट ने यह टिप्पणियां किशोर की जमानत याचिका को खारिज करने के खिलाफ जेजे अधिनियम की धारा-102 के तहत दायर एक याचिका की सुनवाई के दौरान की।
घटना के समय था 15 साल 6 महीने 18 दिन का
मामले के अनुसार , तीन आरोपियों के खिलाफ FIR दर्ज की गई थी। इसमें आरोप था कि पीड़िता कॉलेज परिसर में खड़ी थी। वहां उसे आरोपियों ने पिस्तौल से गोली मार दी। अस्पताल ले जाते समय रास्ते में ही उसकी मौत हो गई। यहां किशोर न्याय बोर्ड ने रीविजनिस्ट को किशोर घोषित किया, क्योंकि वह घटना के समय सिर्फ 15 साल 6 महीने 18 दिन का था। बाद में जेजे एक्ट की धारा-12 के तहत रीविजनिस्ट की ओर से दायर जमानत आवेदन को किशोर न्याय बोर्ड ने खारिज कर दिया। अपीलीय कोर्ट ने भी किशोर न्याय बोर्ड के आदेश को बरकरार रखा। इसलिए, अपीलीय न्यायालय और किशोर न्याय बोर्ड द्वारा पारित आदेशों के खिलाफ रीविजनिस्ट ने मौजूदा याचिका दायर की थी।
जमानत की रियायत से वंचित नहीं किया जा सकता
हाईकोर्ट ने कहा कि अपराध की गंभीरता किशोर को जमानत देने से इनकार करने के लिए प्रासंगिक विचार नहीं है। एक किशोर को जमानत की रियायत से वंचित किया जा सकता है, यदि ‘जेजे एक्ट, 2015’ की धारा 12 (1) के तहत निर्दिष्ट तीन आकस्मिकताओं में से कोई भी उपलब्ध है। कोर्ट ने ‘जेजे अधिनियम, 2015’ की धारा 12 के अनिवार्य प्रावधानों के संबंध में उस किशोर न्याय बोर्ड के साथ-साथ अपीलीय न्यायालय के दृष्टिकोण की आलोचना की और रीविजनिस्ट को जमानत दे दी। कोर्ट ने वर्तमान आपराधिक संशोधन के निस्तारण के दरमियान बच्चों की देखभाल और संरक्षण के मौलिक सिद्धांतों पर प्रकाश डाला। कोर्ट ने किशोर रीविजनिस्ट द्वारा दायर वर्तमान पुनरीक्षण याचिका स्वीकार कर कुछ शर्तों के अधीन जमानत दे दी।