प्रदीप बच्चन (ब्यूरो चीफ)
बलिया (यूपी) रविवार को नहाए खाए से शुरू हुआ छठ पूजा का पर्व,सोमवार को षष्ठी के दिन डूबतेसूर्य(अस्ताचल) के समय सूरज की अंतिम किरण प्रत्यूषा को आर्घ्य देते हैं। सृष्टी की देवी प्रकृति नें खुद को 6 बागों में बांट रखा है। इनके छठे अंश को मातृदेवी के रुप में पूजा जाता है। ये ब्रम्हा की मानस पुत्री हैं। छठ व्रत यानी इनकी पूजा कार्तिक मास में आमवस्या के दीपावली के छठे दिन मनाया जाता है इसलिए इसका नाम छठ पर्व पड़ गया। छठ व्रत भगवान सूर्यदेव को समर्पित एक हिंदुओं का एक विशेष पर्व है। भगवान सूर्यदेव के शक्तियों के मुख्य स्त्रोत उनकी पत्नी उषा औऱ प्रत्यूषा है। यह पर्व उतर भारत के कई हिस्सों में खासकर यू.पी. झारखंड और बिहार में तो महापर्व के रुप में मानाया जाता है। शुद्धता, स्वच्छता और पवित्रता के साथ मनाया जाने वाला यह पर्व आदिकाल से मनाया जा रहा है। छठ व्रत में छठी माता की पूजा होती है और उनसे संतान व परिवार की रक्षा का वर मांगा जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो भी सच्चे मन से छठ मैया का व्रत करता है। उसे संतान सुख के साथ-साथ मनोवांछित फल जरुर प्राप्त होता है। प्रायः हिदुओं द्वारा मनाये जाने वाले इस पर्व के इस्लाम औऱ अन्य धर्मावलम्बी भी मनाते देखे गये हैं।
यह पर्व हर वर्ष चैत एवं कार्तिक महिने में मनाया जाता है जिसे क्रमशः चैती छठ एवं कार्तिकी छठ कहते हैं। कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष में दीवाली के चौथे दिन से शुरु होकर सातवें दिन तक कुल 4 दिनों तक मानाया जाता है। इसमें पहले दिन यानी चतुर्थी को घऱबार साफ सुथरा करके स्नान करने के बाद खाना में चावल तथा चने दाल तथा लौकी का सादा सब्जी बनाया जाता है फिर खाया जाता है जिसे नहा खाये कहते है। अगले दिन संध्या में पंचमी के दिन खरना यानी के गुड़ में चावल का खीर बनाया जाता है। उपले और आम के लकड़ी से मिट्टी के चूल्हें पर फिर सादे रोटी और केला के साथ छठ माई को याद करते हुए अग्रासन निकालने के बाद धूप हुमाद के साथ पूजा के बाद पहले व्रती खाती है फिर घर के अन्य सदस्य खाते हैं। इसी के साथ मां का आगमन हो जाता है। तत्पश्चात षष्टी के दिन घर में पवित्रता एवं शुद्धता के साथ उत्तम पकवान बनाये जाते हैं। संध्या के समय पकवानों को बड़े-बडे बांस के डालों तथा टोकरियों में भरकर नदी, तालाब, सरोवर आदि के किनारे ले जाया जाता है।जिसे छठ घाट कहा जाता है। फिर व्रत करने वाले भक्त उन डालों को उठाकर डूबतेसूर्य(अस्ताचल) के समय सूरज की अंतिम किरण प्रत्यूषा को आर्घ्य देते हैं।ताकि जाते हुए माता सभी दुख दर्द लेती जाये और फिर सूर्यास्त के पश्चात लोग अपने-अपने घर आ जाते हैं। व्रत करने वाले इस दिन पारण करते हैं। यह क्रम खरना के दिन से व्रती लगातार 36 घंटे निर्जल एवं निराहार रहते हुए व्रत करती है। इसलिए इसे कठिनतम व्रत भी कहा गया है। कार्तिक मास में षष्ठी तिथि को मनाए जाने वाले छठ व्रत की शुरुआत पुराणिक काल से ही है।कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाने वाली षष्ठी बरावऔर यह भगवान सूर्य को प्रथम दिन की शाम को षष्ठी तिथि का व्रत रखा जाता है और सरयू नदी में डूबते सूर्य को फल, मिष्टान एवं अन्य वस्तुओं से अर्घ्य प्रदान किया। सप्तमी तिथि को भगवान राम ने उगते सूर्य को अर्घ्य देकर सूर्य देव का आशीर्वाद प्राप्त किया। इसके बाद राजकाज संभालना
शुरु किया। इसके बाद से आम जन भी सूर्य षष्ठी का पर्व मनाने लगे ।
पर्व के विषय में मान्यता है कि षष्टी माता और सूर्य देव से इस दिन जोभी मांगा जाता है वह मनोकामना पूर्ण हो जाती है। भगवान सूर्यदेव के प्रतिभक्तों के अटलआस्था का अनूठा पर्व छठ हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी से सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है।
सूर्य वंदना का उल्लेख ऋगवेद में भी मिलता है। इसके अलावे विष्णु पुरान,भगवत पुरान ब्रम्ह वैवर्त पुरान सहित मार्कण्डेय पुराण में छठ पर्व के बारे में वर्णन किया गया है। दिवाली के ठीक छठे दिन बाद मनाए जानेवाले इस महाव्रत की सबसे कठिन और साधकों हेतु सबसे महत्त्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्टी की होती है जिस कारण हिन्दुओं के इस परम पवित्र व्रत का नाम छठ(Chhath Puja)पड़ा।चार दिनों तक मनाया जानेवाला सूर्योपासना का यह अनुपम महापर्व मुख्यसे बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश सहित सम्पूर्ण भारतवर्ष के अलावे कई देशों में बहुत ही धूमधाम और हर्सोल्लास से मनाया जाता है ।
इश साल 25 अक्टूबर से नहा खाये के साथ शुरु होकर 28 अक्टूबर 2025 तक पारना के साथ मनाया जायगा
