अध्यक्ष चुनाव के बहाने गठबंधनों की एकता की अग्निपरीक्षा; जरूरत पड़ने पर मत विभाजन भी होगा
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अध्यक्ष चुनाव के बहाने गठबंधनों की एकता की अग्निपरीक्षा; जरूरत पड़ने पर मत विभाजन भी होगा

 


18वीं लोकसभा में स्पीकर के चुनाव के बहाने विपक्षी गठबंधन- INDIA और सत्ताधारी गठबंधन- एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) की एकता की अग्निपरीक्षा भी होगी। जरूरत पड़ने पर मत विभाजन भी होगा। भाजपा ने ओम बिरला को प्रत्याशी बनाया है, जबकि उपाध्यक्ष (डिप्टी स्पीकर) पद के लिए आम सहमति न बनने की सूरत में विपक्ष ने आठ बार के कांग्रेस सांसद के सुरेश को प्रत्याशी बनाया है। भाजपा-कांग्रेस के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है। एक-दूसरे के खेमे में सेंध लगाने की कोशिश भी हो सकती है। भाजपा के सामने जहां हर हाल में जीत के इतर राजग में एकजुटता बनाए रखने की चुनौती है, वहीं कांग्रेस के सामने इंडिया ब्लॉक में शामिल दलों को एकसूत्र में बांधे रखने की। दोनों ही खेमे एकदूसरे के गठजोड़ में सेंध लगाने की कोशिश में भी जुट गए हैं। संख्या बल की दृष्टि से भाजपा की अगुवाई वाले राजग को आरामदायक बहुमत हासिल है। राजग के पक्ष में 293 सांसद हैं जो जीत के लिए जरूरी संख्या से 21 ज्यादा हैं। भाजपा की चुनौती यह है कि मतदान के दौरान राजग में यह एकजुटता बनी रहे। एक भी दल का राजग उम्मीदवार से किनारा करना, गठबंधन में फूट पड़ने का संदेश देगा। अमित शाह तैयार कर रहे रणनीति

राजग की ओर से रणनीति की कमान गृह मंत्री अमित शाह के हाथ में है। उन्होंने मंगलवार को राजग के सहयोगी दलों के नेताओं के साथ बैठक कर गठबंधन की एकता सुनिश्चित की। नेताओं को मतदान के नियम बताए गए और सभी सांसदों की हर हाल में उपस्थिति सुनिश्चित करने के भी निर्देश दिए हैं।

कांग्रेस के लिए एकता की चुनौती

कांग्रेस के सामने चुनौती विपक्षी गठबंधन में एकता कायम रखते हुए राजग में सेंध लगाने और निर्दलीय व दूसरे छोटे दलों के 13 सांसदों को अपने खेमे में लाने की है। तीन निर्दलीयाें पप्पू यादव, विशाल पाटील और मोहम्मद हनीफ के समर्थन के बाद विपक्षी गठबंधन के सांसदों की संख्या 235 हो गई है।

सुरेश को 235 तक का समर्थन संभव

नई लोकसभा में छोटे दलों के नौ और सात निर्दलीय सांसद चुन कर आए हैं। इनमें अकाली दल को छोड़कर अन्य सभी का झुकाव कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में हो सकता है। चूंकि टीडीपी राजग गठबंधन में है। कांग्रेस को वाईएसआरसीपी के साथ की उम्मीद थी, लेकिन वह राजग के समर्थन में है।

इसलिए विपक्ष को नहीं दे रहे उपाध्यक्ष पद

भाजपा विपक्ष को उपाध्यक्ष का पद देती तो उसे अध्यक्ष पद भी गंवाना पड़ता। अध्यक्ष पर अपने उम्मीदवार के समर्थन के बदले भाजपा ने उपाध्यक्ष पद राजग के दूसरे सबसे बड़े दल टीडीपी को देने का वादा किया है। अगर वह उपाध्यक्ष पद विपक्ष को देती तो अध्यक्ष पद टीडीपी को देने का दबाव बढ़ जाता। सदन में बहुमत से 32 सीट दूर भाजपा, अध्यक्ष पद किसी हाल में अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहती।

टीएमसी के रुख से राहत

टीएमसी के रुख ने मंगलवार को पहले कांग्रेस को असहज कर दिया था। उम्मीदवार उतारने के सवाल पर सहमति नहीं बनाने के आरोप के साथ टीएमसी ने कांग्रेस उम्मीदवार के नामांकन पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किए थे। लेकिन शाम को टीएमसी के रुख में बदलाव दिखा और उसके के सुरेश को समर्थन पर राजी होने से कांग्रेस को राहत मिली।

...तो पर्चियों से होगा मत विभाजन

लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य के मुताबिक नए सदन के सदस्यों को अभी सीटें आवंटित नहीं की गई हैं तो इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले प्रणाली का इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा। पेश किए गए प्रस्तावों को उसी क्रम में एक-एक करके रखा जाएगा, जिस क्रम में वे प्राप्त हुए हैं। यदि आवश्यक हुआ तो उन पर मत विभाजन के माध्यम से निर्णय लिया जाएगा। यदि अध्यक्ष के नाम का प्रस्ताव पारित हो जाता है (सदन द्वारा ध्वनिमत से स्वीकृत हो जाता है), तो पीठासीन अधिकारी घोषणा करेगा कि सदस्य को सदन का अध्यक्ष चुन लिया गया है और बाद के प्रस्ताव पर मदतान नहीं होगा। यदि विपक्ष मत विभाजन पर जोर देता है तो वोट कागज की पर्चियों पर डाले जाएंगे। इसमें परिणाम आने में थोड़ा वक्त लगेगा।

किसी विपक्षी दल के पर्याप्त सांसद न होने से 16वीं व 17वीं लोकसभा में नहीं था नेता प्रतिपक्ष

16वीं और 17वीं लोकसभा में विपक्ष के किसी भी दल के इतने सांसद नहीं जीते थे कि उसे नेता प्रतिपक्ष का पद दिया जा सके। नेता प्रतिपक्ष पद हासिल करने के लिए लोकसभा के कुल 543 सदस्यों के कम से कम 10 फीसदी यानी 54 सांसद होना अनिवार्य है। 16वीं लोकसभा में कांग्रेस के 44 व 17वीं में 52 सांसद जीते थे। इस बार पार्टी के 99 सांसद जीते हैं। हालांकि राहुल गांधी की ओर से वायनाड सीट खाली करने से यह संख्या 98 रह गई है। इसके बावजूद नेता प्रतिपक्ष का पद हासिल करने के लिए यह पर्याप्त है।

सीबीआई व सीवीसी के प्रमुख की नियुक्ति में भी है भागीदारी

नेता प्रतिपक्ष को कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त रहता है। नेता प्रतिपक्ष की सीबीआई, लोकपाल, केंद्रीय सतर्कता आयोग, केंद्रीय सूचना आयोग और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग जैसी सांविधानिक संस्थाओं के अध्यक्षों की नियुक्ति में भी भागीदारी रहती है। साथ ही नेता प्रतिपक्ष कई महत्वपूर्ण समितियों का सदस्य भी होता है, जिनमें लोकलेखा समिति और कुछ संयुक्त संसदीय समिति भी शामिल हैं। ओम बिरला सबसे सक्रिय सांसदों में रहे, स्पीकर के रूप में कड़े फैसले लेने के लिए भी जाने गए; राजस्थान के कोटा से तीन बार के सांसद ओम बिरला राजस्थान में तीन बार विधायक भी रह चुके हैं। भाजयुमो के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रहे। बतौर सांसद पहले कार्यकाल में 86 फीसदी उपस्थिति के साथ 671 प्रश्न और 163 बहसों में भागीदारी की थी। 2019 में दूसरी बार सांसद बनने पर लोकसभा अध्यक्ष बनाया गया। बिरला के कार्यकाल में नए संसद भवन का निर्माण हुआ। तीन आपराधिक कानून, अनुच्छेद 370 को हटाने, नागरिकता संशोधन अधिनियम समेत कई ऐतिहासिक कानून भी पारित हुए। उन्होंने लोकसभा के 100 सांसदों के निलंबन व संसद की सुरक्षा पर कुछ कड़े फैसले लिए।

के सुरेश केरल से आठ बार के सांसद, 2009 में हाईकोर्ट ने अवैध घोषित कर दिया था निर्वाचन; लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए विपक्ष के उम्मीदवार कोडिकुन्निल सुरेश केरल से आठ बार के सांसद हैं। 4 जून 1962 को तिरुवनंतपुरम में जन्मे के सुरेश 1989 में पहली बार लोकसभा सांसद बने। 1991, 1996 और 1999 में भी वह लोकसभा पहुंचे। 1998 व 2004 में हारे, लेकिन 2009 में वापसी की। 2009 में केरल हाईकोर्ट ने उनके चुनाव को अवैध घोषित कर दिया था, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने बहाल कर दिया था। उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी ने सुरेश को ईसाई बताते हुए उन पर अनुसूचित जाति से होने का फर्जी जाति प्रमाणपत्र लगाने का आरोप लगाया था।

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