प्रयागराज: विकास और कानून व्यवस्था को जातीय गोलबंदी की कड़ी टक्कर, मतों के बिखराव से बढ़ी भाजपा की चिंता
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प्रयागराज: विकास और कानून व्यवस्था को जातीय गोलबंदी की कड़ी टक्कर, मतों के बिखराव से बढ़ी भाजपा की चिंता

 


प्रयागराज: देश को प्रधानमंत्री देने वाली इलाहाबाद संसदीय सीट पर इस बार विकास, राष्ट्रवाद, कानून-व्यवस्था के मुद्दों को जातिवाद ने कड़ी टक्कर दी है। महंगाई, बेरोजगारी के सवाल पर जहां बूथों पर लोग बंटते नजर आए, वहीं भाजपा के परंपरागत मतों में बिखराव की आवाज ने चिंता बढ़ा दी है। ऐसे में मोदी मैजिक के बीच इलाहाबाद में भाजपा की हैट्रिक लगेगी या नहीं, कहना आसान नहीं रह गया है। दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री इसी सीट से चुनकर संसद में पहुंचे थे। इलाहाबाद संसदीय सीट पर इस बार भाजपा और इंडिया गठबंधन के बीच कांटे की टक्कर ने चुनावबाजों के माथे पर सिलवटें डाल दी हैं। पांच विधानसभा सीटों वाले इस संसदीय क्षेत्र में इस बार विकास और कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर जातीय समीकरण हावी दिख रहे हैं। भाजपा यहां से हैट्रिक लगाएगी या गठबंधन का पंजा चलेगा, कुछ कहा नहीं जा जा सकता।

इस सीट पर भाजपा के कद्दावर नेता रहे पं. केशरीनाथ त्रिपाठी के पुत्र नीरज त्रिपाठी और कांग्रेस के टिकट पर लड़ रहे सपा नेता रेवती रमण सिंह के पुत्र उज्ज्वल रमण सिंह के बीच आमने-सामने मुकाबला है। बसपा ने यहां रमेश पटेल चितौरी को उतारा है, लेकिन ज्यादातर बूथों पर उनके न पोलिंग एजेंट दिखे न बस्ते नजर आए। इससे कहा जा सकता है कि भाजपा के मुकाबले इस बार गठबंधन उम्मीदवार के अलावा मुस्लिम मतदाताओं के सामने कोई तीसरा विकल्प भी नहीं रहा। कड़ी धूप में करेली, जीटीबीनगर, खुल्दाबाद, रानीमंडी, अटाला के बूथों पर मुस्लिम मतदाताओं की लंबी कतारें गठबंधन के साथ उनकी एकजुटता बयां करती रहीं। करेली में विद्यानिकेतन के बूथ से परिवार समेत बाहर निकलते समय शफीक अहमद कहते हैं कि महंगाई, बेरोजगारी का सवार सबसे बड़ा है। मोदी को 10 साल मौका दिया गया, लेकिन इस बार परिवर्तन होना चाहिए।

इसी बूथ पर पहली बार मतदान करने आई जोया का भी कहना था कि धर्म-संप्रदाय के नाम पर समाज को बांटने वालों के साथ हम नहीं जा सकते। यहां से आगे राजस्व मंडल लेखपाल के बूथ पर भी कमोवेश यही माहौल रहा। जबकि पुराने शहर के मुट्ठीगंज में अमित कक्कड़ अपनी 80 वर्षीया मां कमलेश कक्कड़ के मजबूत विदेश नीति, आतंकवाद, माफियाराज के सफाया के सवाल पर मतदान करने पहुंचे।

करछना, बारा और मेजा में मुफ्त राशन का मुद्दा असरहीन नजर आया। यानी , कई जगह दलित मतों में भी गठबंधन सेंधमारी करता दिखा। इनके अलावा भाजपा की सांसद रीता बहुगुणा जोशी का टिकट काटकर केशरी नाथ के पुत्र पर दांव खेलने,नया नेतृत्व उभारने को लेकर भी पार्टी के कुछ नेताओं की नाराजगी बूथों पर महसूस की गई। मसलन शहर दक्षिणी के कई बूथों से भाजपा उम्मीदवार के बस्ते तक नहीं पहुंचे। पिछले विधान सभा चुनाव में भाजपा मेजा सीट हार चुकी है। करछना, बारा क्षेत्र भी रेवती रमण सिंह का गढ़ माना जाता रहा है। कोरांव और शहर दक्षिणी से भाजपा को हमेशा उम्मीद रही है, लेकिन इस बार यहां भी कांटे की टक्कर है। इस बार कुर्मी और दलित मतों में विभाजन और मुस्लिम मतों की एकजुटता ने भी चिंता बढ़ाई है। ऐसे में यहां भाजपा की राह यहां आसान नहीं दिख रही है।

यमुनापार में मेजा के उमापुर बूथ पर कुछ मतदाताओं की नब्ज टटोलने की कोशिश की गई तो किसी ने मोदी और किसी ने अखिलेश यादव का नाम लिया। यमुनापार के ज्यादातर बूथों की कमोवेश यही स्थिति रही। वोटरों को प्रत्याशी नहीं बल्कि मोदी और गठबंधन से मतलब था। शहर के भी मतदाता मोदी के ही नाम पर वोट करते नजर आए।

कम मतदान ने उलझा दी सियासतबाजों की गणित

इलाहाबाद सीट पर इस बार कुल 51.57 प्रतिशत मतदान हुआ है। इसमें भाजपा के गढ़ शहर दक्षिणी में सबसे कम 40.32 प्रतिशत मतदान हुआ। मेजा में 52.34 प्रतिशत, करछना में 53.88, बारा 57.58 और कोराव 56.7 प्रतिशत मतदान हुआ। इस तरह कम वोटिंग को लेकर भी चुनावबाजों की गणित उलझ गई है। इस सीट पर कुल 18,07,886 मतदाता हैं।

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