एक वैश्विक आंदोलन सनातनता व अस्तित्व के लिए
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एक वैश्विक आंदोलन सनातनता व अस्तित्व के लिए



भारत का आम हिंदू जन व्यथित है। यह होना स्वाभाविक भी है। न्यायालय के आदेश पर काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर स्थित ज्ञानवापी मस्जिद के मंदिर होने व उसके कूप आदि शिव के शिवलिंग होने के तथ्य व वीडियो सामने आ रहे हैं उसके साथ ही देश में तथाकथित “गंगा-जमुना तहज़ीब” और “हिंदू-मुस्लिम भाईचारे” व “धर्मनिरपेक्षता”जैसे जुमलों की धज्जियां उड़ती जा रही हैं। सबसे वीभत्स व झझकोर देने वाला तथ्य यह है कि इस्लामिक आक्रांताओं के कुकृत्यों के बारे में सब कुछ जानते हुए भी मुस्लिम समाज उस स्थान का प्रयोग “बजूखाने “ ( कुल्ला करने व हाथ धोने) के लिए करता था। स्वयं आदिदेव द्वारा स्थापित शिवलिंग का ऐसा घोर अपमान निश्चित रूप से हिंदुओं को अपमानित करने व नीचा दिखाने के लिए ही किया जाता रहा है। कल्पना कीजिए अगर ऐसा अपमान किसी अन्य धर्म के भगवान का किया जाता तो कैसी हिंसक प्रतिक्रिया होती? और अब जैसे जैसे एक एक कर देश की प्रमुख मस्जिदों सहित हज़ारों मस्जिदों के पूर्व में मंदिर होने व लाल किला, कुतुब मीनार व ताजमहल सहित सभी मुगलकालीन इमारतों के निर्माण हिंदू राजाओं द्वारा करवाने के दावे व तथ्य सामने आ रहे हैं उसके बाद भारत में इस्लाम व इतिहास दोनो की विश्वसनीयता पर ही प्रश्नचिन्ह खड़े हो गए हैं। ब्रिटिश भारत के लिए तो सोचा जा सकता था कि उन्होंने देश को गुलाम बनाए रखने के लिए “ बांटो व राज करो” की नीति अपनाई व अनावश्यक रूप से व अतिरंजित तरीके से इस्लाम को बढ़ावा दिया व झूठा इतिहास लिखा , किंतु आजादी के बाद भारत की सरकार की ऐसी क्या मजबूरी थी कि उसने मुगलों व अंग्रेजों द्वारा किए कुकृत्यों को बदलने की जगह वामपंथी इतिहासकारों की मदद से उनको छिपाने व मुगल राजाओं को महिमामंडित करने की साजिश की। महान सनातन संस्कृति, अत्यंत उन्नत भारतीय सभ्यता व उसके मान बिंदुओ को क्रमिक रूप से नष्ट कर लालच, स्वार्थ, शोषण, हिंसा, लूट व दमन पर आधारित ब्रिटिश राज्य की तथाकथित आधुनिक लोकतांत्रिक बाज़ार अर्थव्यवस्था को भारत पर थोपने की निरंतर साज़िश की गयी व आज भी की जा रही है। हज़ारों वर्षों से समग्रता व संतुष्टि से अपनी भौतिक व आंतरिक उन्नति में रत भारतीय जनमानस की सत्य सनातन व्यवस्थाओं को तोड़ने व छिन्न भिन्न करने के जो षड्यंत्र हुए उसमें जो लोग भी शामिल हुए उनके खिलाफ राजद्रोह के मुकदमे चलने चाहिए व जो भी व्यवस्थाएँ व भवन नष्ट किए गए हों या उनका स्वरूप नष्ट हुआ हो उनको अपनी मौलिक अवस्था में पुनः स्थापित करने का विशाल अभियान सरकार व समाज द्वारा आरंभ किया जाना चाहिए। इसमें जो भी ताकत विरोध करे उसको हर संभव तरीके से समझाना व सत्य तक लाना सरकार व समाज दोनो की ज़िम्मेदारी है। मौलिक भारत की भारत सरकार से निम्न माँग की गई हैं जो समर्थन योग्य हैं -

1)पूरे देश में जिन मंदिरों को तोड़कर मस्जिदे बनाई गयीं उनको वापस भव्य मंदिर बनाया जाए।

2) ऐसी मस्जिदों के लिए अलग जगह दी जा सकती है।

3) जिस भी किसी व्यक्ति ने जानते बुझते हुए भी मंदिर तोड़कर बनाई गई मस्जिदों में कुरान के विरुद्ध नवाज़ पढ़ता है व हिंदू देवी देवताओं का अपमान किया है उनकी पहचान कर उनको देश निकाला दिया जाए।

सनातन के प्रति हमारा आग्रह किसी भावना के वशीभूत नहीं है। सत्य यही है कि सनातन सभ्यता और संस्कृति व उस पर आधारित जीवन शैली ही हर उस समस्या का समाधान देती है जो पिछले तीन चार सौ वर्षों में पाश्चात्य सभ्यता व संस्कृति ने दुनिया के सामने पैदा की हैं। उपभोगवाद व भोग की पश्चिमी संस्कृति के कारण दुनिया में संसाधनों का संकट खड़ा हो गया है व प्रकृति के अत्यधिक दोहन व जीवाश्म ईंधन के अतिशय प्रयोग ने प्रकृति के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए हैं। ग्लोबल वार्मिंग से उपजे जलवायु परिवर्तन हर दिन जीवन को अधिक असामान्य बना रहा है और वैज्ञानिक व नीतिकार हर कुछ वर्षों के अंतराल पर ही “ न्यू नोर्मल” की अवधारणायें गड़ रहे हैं। यह पूर्णतः असामान्य है और एक हो व्यक्ति के जीवन में अब प्रकृति इतने ज़्यादा बार परिवर्तित हो रही है कि उसे कई “न्यू नोर्मल” दौरों से गुजरना पड़ रहा है और उसका शरीर व मान इसके साथ तालमेल नहीं बैठा पा रहा है। असामान्य मौसम से उपजी असामान्य व कम उपज ने विश्व स्तर पर खाद्य संसाधनों की होड़ तो बढ़ा ही दी है , सूखे, बाढ़, तूफ़ान व चक्रवात वैश्विक जीडीपी, आधारभूत ढाँचे को अतिशय नुक़सान पहुँचा रहे हैं। बीमारियां बढ़ रही हैं, सप्लाई चैन बिखर रही है व मंदी, बेरोजगारी, विस्थापन व महंगाई हमें घेरती जा रही है।ऐसे में आशंकित लोग व सरकारें मानसिक रूप से अवसादग्रस्त हो आपसी संघर्षों में घिरते जा रहे है व दुनिया विश्व युद्ध के मुहाने व नष्ट होने के कगार पर आ खड़ी हुई है। 

    इतना सब हो जाने के बाद भी और पर्यावरणवादियों द्वारा लाखों चेतावनी देने कि अगले कुछ दशकों में ही पृथ्वी रहने लायक नहीं रहेगी व हमारे से अगली पीढ़ी शायद ईद युग की अंतिम पीढ़ी हो , दुनिया की सरकारें, कारपोरेट व वैश्विक संस्थान बातों से ज़्यादा कुछ नहीं कर रहे। उनका जीडीपी आधारित विकास के मॉडल से मोह भंग नहीं हो रहा और वो नित दुनिया को गर्त में धकेलते जा रहे हैं। यह सभी को ज्ञात है कि सनातन सभ्यता का माडल ही शाश्वत माडल है, वे अपने तात्कालिक नुकसान होने के डर से उसे अपनाने से भाग रहे हैं। ऐसे में समाज को ही आगे आना होगा और एक वैश्विक आंदोलन कर ऐसी सभी शक्तियों को समाप्त या अप्रासंगिक करना होगा जो सनातन सभ्यता व संस्कृति की व्यवस्था को पुनर्स्थापित करने की विरोधी हैं। क्योंकि अब प्रश्न अस्तित्व का है हमारे भी और प्रकृति के भी!

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