मां-बाप ने इज्जत के लिए बेटी का कत्ल,महिला दिवस से पहले दुनिया की हकीकत
Type Here to Get Search Results !

Advertisement

Acrc institute Acrc instituteAcrc institute

Recent Tube

मां-बाप ने इज्जत के लिए बेटी का कत्ल,महिला दिवस से पहले दुनिया की हकीकत


बिहार: यह खबर बिहार के भागलपुर के कहलगांव कस्बे की है 8 मार्च को पूरी दुनिया विश्व महिला दिवस मनाएगी, भारत में भी इस दिन के मौके पर हज़ारों प्रोग्राम होंगे. महिलाएं सम्मानित की जाएंगी, उनको सशक्त बनाने की लंबी चौड़ी बातें होंगी लेकिन इस एक दिन के पहले महिलाएं और बेटियां जिस यातना से गुज़रती हैं क्या हम वो भी याद करते हैं. बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ के नारे के मुंह चिढ़ाती हुईं खबरें रोज़ाना आँखों के सामने से सरसराती हुईं गुज़र जाती हैं. आज भी कुछ ऐसा ही हुआ. सोशल मीडिया पर एक अखबार का पन्ना हमारे एक सीनियर ने पोस्ट किया. उस ख़बर ने मुझे रुकने पर मजबूर कर दिया और लगा कि हम कब इंसान बन पाएंगे. बेटियों महिलाओं को लेकर कब ये समाज अपना नज़रिया बदल पाएगा. जो खबर पढ़ी और जिसने मुझे लिखने को मजबूर किया उसकी हेड लाइन थी “पढ़ाई के लिए शादी से इंकार करने पर मां-बाप ने बेटी को मार डाला “ अपने ही मां बाप कैसे जान के दुश्मन बन जाते हैं, कैसे बेरहमी से मां-बाप ने बेटी के ख्बावों का कत्ल किया होगा.खबर बिहार के भागलपुर के कहलगांव कस्बे की है. मैंने इस खबर को जब दूसरी जगह ढूंढा तो कहीं नज़र नहीं आई. नज़र इसलिए नहीं आई क्योंकि किसे दिलचस्पी है बिहार के छोटे से कस्बे में बोटी-बोटी की गई बेटी की. ना तो ये किसी मेट्रो सिटी में हुआ है ना इसमें धर्म का कोई एंगल. फिर ये खबर किसी अखबार, किसी न्यूज़ चैनल की सुर्खी क्यों बनती. ना जाने ऐसी कितनी सुमन मारी जाती हैं, ना जाने ऐसी कितनी सुमन अपने ही घरों में अपने ख्बावों को टूटते हुए देखती हैं. कहलगांव की सुमन की गलती इतनी थी कि वो टीचर बनना चाहती थी और माता-पिता की पसंद से शादी नहीं करना चाहती थी. मां-बाप ने उसके लिए एक विदुर का इंतिख़ाब किया था जिससे सुमन को इंकार था. यही इंकार उसकी जान लेने की वजह बन गया. कहा जा रहा है कि वो किसी और को पसंद करती थी. अपनी बेटी और उसके ख्बावों को बोटी-बोटी करने वाले पिता शिक्षक हैं.आरोप है कि बेटी के कत्ल में उनका साथ मां, भाई और उसके दोस्त ने दिया.
बेटी है तो कल है, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे स्लोगन सिर्फ़ दीवारों पर सजे हुए लग रहे हैं. महिला दिवस के मौके पर करोड़ों रुपए फूंके जाएंगे. सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं बड़े बड़े कार्यक्रम करेंगी, जश्न मनाया जाएगा लेकिन वहीं कहीं कोई सुमन अपने सपनों को मरते हुए देखती है. अगर वह ज़्यादा ज़िद करेगी तो जान से भी हाथ धो सकती हैं. समाज को और परिवार को आज भी दबी कुचली लड़कियां ही रास आती हैं. आज भी लाखों करोड़ों बेटियों को सपने देखने का अधिकार नहीं है, वो घरों पर एक क़ैदी की तरह रहती हैं जिन्हें जेल से बेहतर खाना पीना ज़रूर मिलता है लेकिन आज़ादी यहां भी नहीं. बेटियां सपने देखने, उनमें रंग भरने, उन्हें जीने की सज़ा भी भुगतती हैं. एक पढ़ा लिखा शिक्षक पिता जो बेटी को इसलिए कत्ल कर देता है कि वो आगे पढ़ना चाहती है, अपने पिता ही की तरह शिक्षक बनना चाहती है, वो किसी विदुर से शादी नहीं करना चाहती है. शिक्षक कातिल पिता अपने स्टूडेंट्स को आखिर क्या शिक्षा देता होगा, आखिर उसने क्या सिखाया होगा अब तक जो अपनी झूठी शान के खातिर अपनी ही बेटी को बोटी-बोटी कर देता है उतार देता है उसे मौत के घाट.इज्ज़त के नाम पर कत्ल की जाने वाली सुमन ना कोई पहली बेटी थी ना ही आखिरी होगी. हज़ारों सुमन क़त्ल की जा चुकी हैं माता-पिता की झूठी शान के लिए. पहले बेटियों के कंधें पर परिवार की झूठी इज्ज़त और शान का लबादा डाल दो, जब वो इसका बोझ उठाने से इंकार कर दें तो उन्हें कत्ल कर दो. बेटियों, महिलाओं के कांधे पर आखिर क्यों परिवार की इज्ज़त का सारा बोझ होता है, जो अपनी मर्ज़ी से ज़िंदगी जीने पर,ज़िदगी के फ़ैसले लेने पर चली जाती है. आखिर परिवार की इज्ज़त है क्या, आखिर समाज है क्या? किसी बेटी के ख्बावों को कत्ल कर देना, उसे उसकी मर्ज़ी से जीने ना देना, उस उसके फ़ैसले ना लेने देना. सरकारों को संस्थाओं को जब बेटियों को ज़िंदा रखने के लिए जद्दोजहद करनी पड़े, उन्हें शिक्षित करने के लिए लोगों को जागरुक करना पड़े तो सवाल हमारे आपसे ही होंगे. आखिर समाज के तौर पर हम कहां खड़े हैं, ये समाज ये परिवार बेटियों के लिए इतना निर्दयी कैसे है. पिता तो इज्जत के लिए बेटी को मजबूर कर सकता है उसे मार सकता है लेकिन मां का क्या. वो मां होने के साथ साथ एक महिला भी होती है क्या उसे अपनी बेटी को उड़ान भरने की आज़ादी नहीं देनी चाहिए. एक कमज़ोर महिला भले कमज़ोर बेटी हो लेकिन वो एक मज़बूत मां बन सकती है. लेकिन उसके लिए उसे ख़ुद मजबूत होना होगा. महिला सशक्तिकरण के नारों से दीवारें रंगने से कुछ नहीं होगा हमें चाहिए कि हम बेटियों के कांधे इज्जत का लबादा हटा दें, उन्हें सिर्फ़ एक इंसान के तौर पर देखें, दुनिया बेहतरीन हो जाएगी.
Tags

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Below Post Ad

Hollywood Movies