शोधकार्यों में पाण्डुलिपियों का महत्व विषयक संगोष्ठी राजकीय पाण्डुलिपि पुस्तकालय,प्रयागराज एवं केन्द्रीय राज्य पुस्तकालय उ-प्र० प्रयागराज के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया। ।
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शोधकार्यों में पाण्डुलिपियों का महत्व विषयक संगोष्ठी राजकीय पाण्डुलिपि पुस्तकालय,प्रयागराज एवं केन्द्रीय राज्य पुस्तकालय उ-प्र० प्रयागराज के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया। ।



 आज दिनांक 30 जुलाई 2025 को शोधकार्यों में पाण्डुलिपियों का महत्व विषयक संगोष्ठी राजकीय पाण्डुलिपि पुस्तकालय,प्रयागराज एवं केन्द्रीय राज्य पुस्तकालय उ-प्र० प्रयागराज के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया। । 

उक्त संगोष्ठी का शुभारंभ मुख्य अतिथि प्रो० बनमाली विश्वाल, वरिष्ठ आचार्य केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, प्रयागराज ने दीप प्रज्वलित कर किया l इस संगोष्ठी कार्यक्रम में सम्मानित वक्ता के रूप में प्रो० अनिल कुमार गिरि, संस्कृत विभाग इलाहाबाद विश्वविद्यालय,डॉ. अरुण कुमार मिश्र सहायक आचार्य मुनीश्वर दत्त स्नात कोत्तर महाविद्यालय प्रतापगढ़ , डॉ. फाजिल हाशमी, समन्वयक उर्दू विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ, डॉ. नीलोफर हफीज,सहायक आचार्य, उर्दू-फारसी विभाग, इलाहाबाद विश्व विद्यालय उपस्थित थे l मंच पर श्री रामआसरे सरोज पुस्तकालयाध्यक्ष केंद्रीय राज्य पुस्तकालय उत्तर प्रदेश, प्रयागराज थे, जिन्होंने काव्यात्मक पाठ भी किया। कार्यक्रम का संचालन हरिश्चन्द्र दूबे ने किया। अतिथियों का स्वागत श्री राकेश कुमार वर्मा जी ने किया । सभागार में बड़ी संख्या में शोध छात्र-छात्राएं उपस्थित रही। राजकीय इण्टर कॉलेज के शिक्षक व विद्यार्थी उपस्थित रहे। डॉ अरुण कुमार मिश्र ने अपने व्याख्यान में पांडुलिपियों के महत्व की विस्तार से चर्चा की, उन्होंने बताया कि पांडुलिपि से हमारा शोध अधिक प्रामाणिक प्रासंगिक, दोषमुक्त और गुणयुक्त होता है। इससे न केवल वैज्ञानिक और तकनीकी ज्ञान, अपितु भाषा और लिपि का अध्ययन भी किया जाता है। प्रो अनिल कुमार गिरि ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा और पाश्चात्य ज्ञान परंपरा दोनों को समझने के लिए पांडुलिपि का ज्ञान अति आवश्यक है। मनुष्य की पीढ़ी दर पीढ़ी अध्ययन में जो भ्रांतियां है उन्हें पांडुलिपियों से हम प्रामाणिक व प्रासंगिक बनाते हैं। डॉ नीलोफर हाफिज सहायक आचार्य फारसी विभाग इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने फारसी पांडुलिपियों पर आधारित शोध में शोध में होने वाली समस्याओं एवं उनके निराकरण के बारे में के बारे में विस्तृत चर्चा की l लखनऊ विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग से पधारे डॉक्टर फाजिल हाशमी सर ने उपस्थित श्रोताओं को बताया की पांडुलिपि को उर्दू में मखतूता कहते हैं यह भी बताया कि अपने संचित ज्ञान को बढ़ाने के लिए पांडुलिपियों का अध्ययन आवश्यक है l इस संगोष्ठी कार्यक्रम के मुख्य अतिथि रहे प्रोफेसर बनमली बिस्वाल ने कहा कि वर्तमान समय में प्रचलित नई शिक्षा नीति 2020 में भारतीय ज्ञान परंपरा को विशेष महत्व दिया गया है और भारतीय ज्ञान परंपरा का मूल आधार हमारे पांडुलिपि ग्रंथ ही हैं, अतः वर्तमान समय में पांडुलिपियों का अध्ययन सभी विद्यार्थियों के लिए परम आवश्यक हो गया है l

 राष्ट्रगान के उपरांत कार्यक्रम का समापन हुआ

 कार्यक्रम में रुसी श्रीवास्तव,ज्येष्ठ प्राविधिक सहायक, डॉक्टर शाकिरा तलत, श्री अजय कुमार मौर्य, श्री राज नारायण पटेल,श्री शुभम कुमार श्री अभिषेक कुमार सहित राजकीय पांडुलिपि पुस्तकालय एवं केंद्रीय राज्य पुस्तकालय के कर्मचारी एवं अधिकारी गण उपस्थित रहे l

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