प्रयागराज: अभिलेख एवं पाण्डुलिपि अभिरूचि विषयक छह दिवसीय कार्यशाला कार्यकम का समापन
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प्रयागराज: अभिलेख एवं पाण्डुलिपि अभिरूचि विषयक छह दिवसीय कार्यशाला कार्यकम का समापन



 प्रयागराज: अभिलेख एवं पाण्डुलिपि अभिरूचि विषयक छह दिवसीय कार्यशाला कार्यकम का समापन


अभिलेख पर आधारित शोध ही होते है प्रमाणिक- डॉक्टर आलोक प्रसाद


क्षेत्रीय अभिलेखागार (संस्कृति विभाग) द्वारा केन्द्रीय राज्य पुस्तकालय परिसर में आयोजित ‘अभिलेख/पाण्डुलिपि अभिरूचि विषयक छह दिवसीय कार्यशाला‘ कार्यकम का शनिवार को समापन हुआ l 


कार्यशाला में मुख्य अतिथि डॉक्टर आलोक प्रसाद पूर्व विभागाध्यक्ष इतिहास विभाग इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने बताया कि अब डिजिटल फॉर्म के मैटर भी अभिलेख की श्रेणी में आते हैं उन्होंने यह भी बताया कि अभिलेख एवं शोध का घनिष्ठ संबंध होता है बिना अभिलेख के शोध नहीं हो सकता, डॉ प्रसाद ने इस बात पर जोर देते हुए कहा की अभिलेखागार के अभिलेख पर आधारित शोध ही प्रमाणिक होते हैं l शोध के क्षेत्र में उन्होंने बताया कि सबसे प्रमाणित स्रोत अभिलेख होते हैं l उन्होंने दस्तावेजों का गहन अध्ययन और शोध की आवश्यकता के बारे में विस्तार से बताया। 

कार्यशाला में विभिन्न विश्व विद्यालयों के लगभग 80 से अधिक छात्र/छात्राओं ने प्रतिभाग किया।  

 कार्यक्रम का संचालन श्री हरिश्चन्द्र दुबे प्राविधिक सहायक(संस्कृत) द्वारा किया गया। अतिथियों का स्वागत और आभार श्री राकेश कुमार वर्मा प्राविधिक सहायक(इतिहास) द्वारा किया गया। श्री गुलाम सरवर प्रभारी क्षेत्रीय अभिलेखागार, प्रयागराज द्वारा सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया गया। इस अवसर पर श्री राम आसरे सरोज पुस्तकालयाध्यक्ष केन्द्रीय राज्य पुस्तकालय, डॉ शाकिरा तलत, प्राविधिक सहायक, रूसी श्रीवास्तव ज्येष्ठ प्राविधिक सहायक, वेदानन्द विश्वकर्मा, शुभम कुमार सहित विभिन्न विश्व विद्यालयों के छात्र छात्राओं की उपस्थिति रही।


 कार्यशाला के प्रतिभागी छात्र-छात्राओं ने किया राजकीय पांडुलिपि पुस्तकालय का भ्रमण

 

 आज की कार्यशाला में प्रमाण पत्र वितरण के पश्चात सभी प्रतिभागियों क़ो राजकीय पांडुलिपि पुस्तकालय का भ्रमण भी कराया गया l पुस्तकालय में प्राविधिक सहायक हरिश्चंद्र दुबे एवं डॉ शाकिरा तलत के द्वारा संस्कृत एवं उर्दू फारसी पांडुलिपियों के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की गई तथा लखनऊ से आए संरक्षण सहायक श्री शैलेंद्र यादव एवं मो. शफीक के द्वारा पांडुलिपियों और अभिलेखों के हैंडलेमिनेशन की विधि के प्रयोगात्मक पक्ष को भी दिखाया गया l पाण्डुलिपि अधिकारी गुलाम सरवर ने मुगल फरमान एवं प्राचीन मानचित्रो को दिखाया जिसे देखकर छात्रगण उत्साहित दिखे l प्रतिभागी छात्र-छात्राओं को ऋग्वेद की पांडुलिपि,चरक संहिता, ताड़ पत्र की पांडुलिपि श्री रामचरितमानस, प्रयाग महात्म्य, सूर्य वंशावली, कबीर दास की साखी, चकताई नामा, आईने अकबरी पद्मावत श्रीमद् भागवत महापुराण का उर्दू अनुवाद, तथा 3*2 इंच की सबसे छोटी श्रीमद् भागवत गीता की पांडुलिपि भी दिखाई गई l

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