जियाउल हक मर्डर: हाथ से लिखे 17 पन्नों के फैसले से फंसा बबलू, एक्सीडेंट से मौत के बाद राजा पर गहराया था शक
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जियाउल हक मर्डर: हाथ से लिखे 17 पन्नों के फैसले से फंसा बबलू, एक्सीडेंट से मौत के बाद राजा पर गहराया था शक

 


तमंचे से गोली मारकर सीओ जियाउल हक की जान लेने वाला नन्हें यादव का बेटा योगेन्द्र यादव बबलू पहले नाबालिग पाया गया था। राजधानी के जेजे बोर्ड की सदस्य डाॅ. रश्मि रस्तोगी द्वारा हाथ से लिखे गए फैसले में उसे बालिग करार दिया गया, जिससे वह बुरी तरह फंस गया। हालांकि चार साल बाद उसकी सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। इस हादसे के पीछे रघुराज प्रताप सिंह 'राजा भैया' का हाथ होने के कयास भी लगाए गए थे। दरअसल, पिता के बाद चाचा सुरेश यादव की मौत से बौखलाए बबलू ने सीओ को तमंचे से गोली मार दी थी। वहीं बाकी लोग सीओ को लाठी-डंडों से पीट रहे थे। सीबीआई जांच होने पर उसके नाबालिग होने का दावा किया गया, जिसके बाद उसका मामला किशोर न्याय बोर्ड, लखनऊ (जेजे बोर्ड) के पास भेज दिया गया। उसके परिजनों ने बबलू की हाईस्कूल की मार्कशीट पेश की, जिसमें उसकी जन्म तिथि 15 मई 1996 दर्शाई गई थी। बोर्ड ने इसकी जांच के लिए उसके शैक्षिक दस्तावेज मंगवाए, जिसमें काफी काटा-छांट मिलने पर दसवीं की मार्कशीट में दर्ज उसकी जन्मतिथि को गलत करार दिया गया।बोर्ड ने अपराध के वक्त बबलू की उम्र 18 वर्ष 2 महीने 15 दिन मानते हुए उसे जिला कारागार लखनऊ भेजने के आदेश दिया था। बोर्ड के प्रधान न्यायाधीश उदयवीर सिंह और सदस्यों दिनेश पांडेय और डॉ. रश्मि रस्तोगी ने अपने फैसले में लिखा था कि शैक्षिक दस्तावेजों में यह स्पष्ट होता है कि जन्मतिथि को बदलने के लिए 2007-08 से लेकर बाद के वर्षों के शैक्षिक दस्तावेजों में दर्ज जन्मतिथि में कांट-छांट की गई। इस दौरान वह कक्षा 8 व 9 में था। इसी के आधार पर कक्षा 10 में अपनी उम्र करीब डेढ़ वर्ष कम लिखवा सका। बोर्ड ने किशोर न्याय (बालकों की देखरेख एवं संरक्षण) नियमावली 2007 के नियम 12(3)1 का उल्लेख करते हुए कहा था कि आयु निर्धारण में दसवीं की मार्कशीट को प्रथम साक्ष्य के तौर पर माना गया है और उसके उपलब्ध न होने पर उसके पहली बार स्कूल जाने की तिथि के प्रमाण पत्र को स्वीकारा गया है।

हाथ से लिखना पड़ा फैसला

उस वक्त बोर्ड की खस्ताहाली का हाल यह था कि राज्य सरकार के लिए किरकिरी बन चुके कुंडा कांड के एक महत्वपूर्ण फैसले को लिखने के लिए कोई क्लर्क तक नहीं था। बोर्ड में नियुक्त एकमात्र क्लर्क छुट्टी पर था, नतीजतन बोर्ड की सदस्य डॉ. रश्मि रस्तोगी को 17 पेज का फैसला हाथ से लिखना पड़ा था, जिसमें घंटों लग गए थे।

राजा भैया पर कराया था मुकदमा

ट्रक से टक्कर होने से बबलू की मौत के बाद परिजनों ने पूर्व मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया और एमएलसी अक्षय प्रताप सिंह उर्फ गोपाल जी समेत पांच लोगों पर हत्या करवाने व साजिश रचने का आरोप लगाते हुए मुकदमा दर्ज कराया था। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए लखनऊ की विधि विज्ञान प्रयोगशाला की टीम को भेजकर जांच कराई गई थी।

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