मोरारी बापू का विशेष साक्षात्कार : जगत रूपी चाक पर परमात्मा की कुंभ की रचना अद्भुत, संगम वैश्विक एकता का तट
Type Here to Get Search Results !

Advertisement

Acrc institute Acrc instituteAcrc institute

Recent Tube

मोरारी बापू का विशेष साक्षात्कार : जगत रूपी चाक पर परमात्मा की कुंभ की रचना अद्भुत, संगम वैश्विक एकता का तट

 


महाकुंभ में राष्ट्र संत मोरारी बापू ने मानस का महाकुंभ लगाया है। अरैल में यमुना तट के टीले से वह त्रिवेणी की पावन धारा को निरंतर मथते और अभिभूत होते रहते हैं। इस बार उनके मानस महाकुंभ का केंद्र बिंदु है- सादर मज्जहिं सकल त्रिवेनी...। बृहस्पतिवार को अमर उजाला से विशेष साक्षात्कार में उन्होंने महाकुंभ से जुड़े सवालों पर अपने गहरे अनुभवों को विस्तार से साझा किया। मोरारी बापू से अनूप ओझा की बातचीत के प्रमुख अंश...।

प्रश्न : रामकथा में अनूठे प्रयोगों के लिए आप जाने जाते हैं। आप रामकथा को सहज और सरल तरीके से जन-जन तक पहुंचाते, रसपान कराते हैं। महाकुंभ में इस बार की कथा में क्या नया प्रयोग कर रहे हैं?

उत्तर: हर कुंभ में हम नौ दिन रामकथा का अनुष्ठान करते हैं। यहां इस बार महाकुंभ लगा है। इतने सालों के बाद ग्रह -नक्षत्र एक साथ अनुकूल हुए हैं। इस महाकुंभ का संदेश है कि व्यक्ति-व्यक्ति, परिवार-परिवार, समाज-समाज, भाषा-भाषा, वर्ण-वर्ण, जाति-जाति, देश- दुनिया सबके बीच में वैचारिक संगम हो। बौद्धिक और हार्दिक संगम हो। हमारे चिंतन का केंद्र बिंदु संगम है। यह महाकुंभ, इतने सालों के बाद हो रहा है। इसलिए इसबार की कथा का नामकरण किया है मानस महाकुंभ।

प्रश्न: रामचरित मानस को एक शब्द में कहना हो तो क्या कहेंगे?

उत्तर: मेरे अनुभव में रामचरित मानस भी एक महाकुंभ है, जो निरंतर अंतर्रस्नान और अवगाहन कराता है। इसका दर्शन, इसका स्पर्श, इसका आचमन, इसका निवज्जन चारों रूपोें का रामचरित मानस की पंक्ति में वर्णन आता है। मेरी दृष्टि में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती की त्रिवेणी स्थावर संगम और राम चरित मानस जंगम संगम है। दुनियाभर में प्रयागराज घूम रहा है। माघ मकरगत रवि जब होई, तीरथ पतिहिं आउ सब कोई...। देव दनुज किन्नर नर श्रेनी, सादर मज्जहिं सकल त्रिवेणी... इन्हीं दो पंक्तियों के आधार पर संवाद चल रहा है।

प्रश्न: महाकुंभ में डुबकी लगाने के लिए पूरी दुनिया आतुर है। लोग दौड़ते, भागते संगम पहुंच रहे हैं। महाकुंभ को किस रूप में परिभाषित करेंगे।

उत्तर: देखिए, परमात्मा ने भी जगत का कुंभ बनाया है। जगत रूपी चाक बनाकर कुंभ की रचना करते हैं। समुद्र मंथन से निकले अमृत कुंभ की बूंदें चार स्थानों पर जहां भी गिरी हैं, वहां अमृत होने का बोध होता है। महाकुंभ में अमृत पान के लिए लोग आ रहे हैं। इस कुंभ का चिंतन अनेक रूपों में किया गया है। कुंभ से ही कुंभज रामकथा लेकर उत्पन्न हुए थे।

प्रश्न: इस बार महाकुंभ की व्यवस्था आपको कैसी लगी, इस दिव्य-भव्य और सुरक्षित कुंभ के रूप में आप कितना महसूस करते हैं?

उत्तर: मेरी राय में महाकुंभ दिव्य-भव्य से आगे सेव्य है। कुंभ का अर्थ समस्त वेद- शास्त्रों का सत्व-तत्व भी होता है। सत्व-तत्व का कुंभ में दान करके लोग धन्य हो जीते हैं। कुंभ के कई अभिप्राय हैं। कुंभ के पीछे धर्म का आश्रय करें तो पता चलता है कि समुद्र मंथन से जो अमृत कलश निकला था। उसको देव, असुर सब पीना चाहते थे। महाकुंभ भव्य और दिव्य भी है। मेरी राय में दिव्य और भव्य के साथ इस सेव्य कुंभ का सेवन किया जाना चाहिए। जब तक अमृत का सेवन न किया जाए, तबतक।भव्य और दिव्य नहीं कहा जा सकता।

प्रश्न: इतने बड़े विश्वस्तरीय तंबुओं के मेले के प्रबंधन के बारे में क्या कहेंगे?

उत्तर: महामना मदन मोहन मालवीय से एक अंग्रेज अफसर ने पूछा था कि आपके यहां महाकुंभ कैसे होता है। मालवीय ने बताया था कि महाकुंभ बसाने में सिर्फ चार आने लगते हैं। महामना ने अफसर को बताया कि हम छोटे से पंचांग में छाप देते हैं कि कुंभ 14 जनवरी को लगने वाला है और पूरी दुनिया जुट जाती है। इसलिए यह कुंभ स्वयंभू है। अब तो बहुत सुधार हुआ है। सीएम योगी आदित्यनाथ खुद संत हैं और उन्होंने संतों-भक्तों को हर स्तर की सुविधाएं प्रदान की हैं। यहां सुविधा और स्वच्छता है।

प्रश्न: संस्कृतियों के इस अनंत मेले आकर कैसा लगता है?

उत्तर: यहां कौन पूछता है कि कौन ब्राह्मण है, कौन क्षत्रिय है, कौन किस जाति का है। किस भाषा, प्रांत, वर्ण से है। कुंभ जैसी से एकता कहीं नहीं मिलेगी। सब जुटते हैं, बिना कोई नेटवर्क बनाए। सााधु- संत सब अपने हिसाब से सवारी निकालते हैं। यह हमारे लिए अच्छी बात है। कोटि-कोटि जन स्नान कर रहे हैं। यह सबसे बड़ी एकता है। धन्य है भारत की भूमि, जहां तीन पावन नदियों की धारा आपस में मिलकर हम सबको मिलना सिखा रही है।

प्रश्न: संगम की महिमा को किस रूप में व्यक्त करेंगे?

उत्तर: संगम में डुबकी लगाने का महत्व है। हाथ पैर धुलने और आचमन करने की भी महिमा है। डुबकी में पूरा अंग अंदर जाता है। जैसे किसी से सिर्फ हाथ मिलाएं, तो इतना ही संगम नहीं है। हमारे नेत्र, वाणी, कर्म, यात्रा और प्रत्येक इंद्रियों का संगम होना चाहिए। डुबकी लगाने से संगमी दीक्षा प्राप्त होती है। डुबकी लगाने से संगम से अभिषेक होता है। मनुष्य से परस्पर प्रेम का संगम होता है।

प्रश्न: इस महाकुंभ में सबके अपने-अपने एजेंडे हैं। कई जगह धर्म संसद हो रही हैं। इस पर आपकी क्या राय है?

उत्तर: महाकुंभ में बड़े- बड़े महापुरुष एकत्र हुए हैं। सभी अपने-अपने बैनर के नीचे एकत्र हो रहे हैं। जो भी हो साधु-संतों का चिंतन-मनन हितकारी हो।धर्म संसद के माध्यम से या किसी भी माध्यम से जो भी चिंतन हो, वह हमारे यहां सर्व धर्म सुखाय, सर्व जन हिताय को केंद्र में रखकर होना चाहिए। वृक्षों, नदियों, पर्यावरण, पक्षियों, पंचतत्वों की भी रक्षा होनी चाहिए। महापुरुष जो भी निर्णय करें, एक वर्ग या जन तक सीमित न रहे। सर्वे भवंतु सुखिन: में पूरी कायनात आती है। साधु -संत सबके लिए विचार करें।

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Below Post Ad

Hollywood Movies