Mahakumbh 2025 : श्रद्धालुओं को राम नाम लेखन का ऋण दे रहा है श्रीराम बैंक, लेकिन कुछ शर्तों के साथ
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Mahakumbh 2025 : श्रद्धालुओं को राम नाम लेखन का ऋण दे रहा है श्रीराम बैंक, लेकिन कुछ शर्तों के साथ

 


यह बैंक है...मगर पैसों का लेनदेन नहीं करता। इसका नाम है, श्रीराम बैंक। यह श्रद्धालुओं को प्रभु राम का नाम लिखने का ऋण देने वाला बैंक है। अब तक यहां से करोड़ों राम नाम लिखने का ऋण दिया जा चुका है। यहां जमा करने से ज्यादा ऋण लेने की होड़ है। इस बैंक की शाखा मेला क्षेत्र के सेक्टर छह में 22 दिसंबर को खोली गई थी। इसके कर्ताधर्ता आशुतोष वार्ष्णेय बताते हैं कि यह बैंक करीब 150 वर्ष पुराना है। इसकी ईएमआई (मासिक किस्त) भी वसूली जाती है। इसका लेखा-जोखा भी रखा जाता है। आशुतोष बताते हैं कि न्यूनतम ऋण डेढ़ लाख का है। इसके आगे कितना ऋण लेना है, यह श्रद्धालु पर निर्भर है। राम नाम लिखन के लिए छपी-छपाई मुफ्त कॉपियां दी जाती हैं। इनके रिक्त खानों में ही प्रभु का नाम लिखना होता है। बुकलेट के हर पेज पर राम नाम की गणना भी दर्ज होती चलती है।

कॉपियां भर जाने के बाद श्रद्धालु उन्हें राम बैंक में जमा करा देते हैं। बाद में यही कॉपियां दूसरे के लिए ऋण का काम करती हैं। किसी श्रद्धालु को 1.5 लाख राम नाम का ऋण दिया गया है तो इसे वह किस्त के रूप में लिखकर लौटाता है। अभी तक 25 से अधिक लोग करोड़ों राम नाम लिखने का कर्ज ले चुके हैं। महाकुंभ के बाद इसका आधिकारिक डाटा जारी किया जाएगा।

राम नाम का लेखन हिंदी के साथ अंग्रेजी, उर्दू और बांग्ला में भी कर सकते हैं। यह बैंक छह से लेकर 80 साल तक के लोगों को ऋण देता है। शर्त यह है कि इसे लिखने वाले को मांस-मदिरा के साथ लहसुन-प्याज का सेवन भी छोड़ना पड़ता है। मेला शाखा के प्रचारक राजकुमार बताते हैं कि ऋण लेने के लिए लाभार्थी के पास केवल अपना एक फोटो होना चाहिए, जिससे उसकी पहचान हो सके। संवाद

नीदरलैंड के हैंक ने लिया है एक करोड़ का ऋण

राम नाम का ऋण लेने वालों में कई विदेशी श्रद्धालु भी हैं। इन्हीं में हैं, नीदरलैंड के हैंक केल्मैन और अमेरिका में प्रवास कर रहीं सोनल सिंह। इन्होंने एक-एक करोड़ का ऋण लिया है। हैंक अब रामकृष्ण दास हो चुके हैं।

बही खातों से ई-राम तक आ गया बैंक

बैंक की शुरुआत को लेकर आशुतोष वार्ष्णेय बताते हैं कि यह उनकी पांचवीं पीढ़ी है। चौक के व्यापारियों ने इसकी शुरुआत की थी। वे अपनी कमाई का 10 फीसदी सामाजिक कार्यों में खर्च करते थे। इसी से राम नाम लेखन शुरू हुआ। पहले उनके बही खातों में लिखा जाता था। फिर, बुकलेट आ गई। अब ई-राम भी आ चुका है। 

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