अखाड़ों के छावनी प्रवेश के दौरान निकलने वाली शोभायात्रा में काशी और दरभंगा की रंगमंडली के कलाकार स्वांग और रास रचा रहे हैं। कोई अघोरी बन रहा है तो कोई कान्हा। इन कलाकारों की फीस भी दो हजार से लेकर सवा लाख रुपये तक है। महाकाल की भूमिका निभाने वाले काशी के सोनू बताते हैं कि भगवान का स्वांग रचाना आसान नहीं होता है। इसके लिए कई तरह की तैयारियां करनी पड़ती हैं। 2019 में पहली बार महाकाल का स्वरूप धारण किया था। भभूत उड़ाते हुए स्वरूप ने सबके दिल में जो जगह बनाई, आज वही पहचान है। महाकाल की टीम में पार्वती की भूमिका सपना और अघोरी का किरदार 10 युवा निभाते हैं। वहीं, दरभंगा के विपिन ने बताया कि उनकी टीम भी यहां कार्यक्रमों में शामिल हो रही है। कलाकारों को चरित्र के हिसाब से भुगतान किया जाता है। चरित्र को निभाने के लिए उनकी टीम आधुनिक उपकरणों का भी प्रयोग करती है।
महाकाल के स्वरूप की है मांग