MahaKumbh: यहां तो सवा लाख रुपये फीस लेते हैं ‘महाकाल’, कोई अघोरी बना तो कोई कान्हा; आकर्षण में मूंछों का डांस
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MahaKumbh: यहां तो सवा लाख रुपये फीस लेते हैं ‘महाकाल’, कोई अघोरी बना तो कोई कान्हा; आकर्षण में मूंछों का डांस

 


अखाड़ों के छावनी प्रवेश के दौरान निकलने वाली शोभायात्रा में काशी और दरभंगा की रंगमंडली के कलाकार स्वांग और रास रचा रहे हैं। कोई अघोरी बन रहा है तो कोई कान्हा। इन कलाकारों की फीस भी दो हजार से लेकर सवा लाख रुपये तक है। महाकाल की भूमिका निभाने वाले काशी के सोनू बताते हैं कि भगवान का स्वांग रचाना आसान नहीं होता है। इसके लिए कई तरह की तैयारियां करनी पड़ती हैं। 2019 में पहली बार महाकाल का स्वरूप धारण किया था। भभूत उड़ाते हुए स्वरूप ने सबके दिल में जो जगह बनाई, आज वही पहचान है। महाकाल की टीम में पार्वती की भूमिका सपना और अघोरी का किरदार 10 युवा निभाते हैं। वहीं, दरभंगा के विपिन ने बताया कि उनकी टीम भी यहां कार्यक्रमों में शामिल हो रही है। कलाकारों को चरित्र के हिसाब से भुगतान किया जाता है। चरित्र को निभाने के लिए उनकी टीम आधुनिक उपकरणों का भी प्रयोग करती है। 

महाकाल के स्वरूप की है मांग

महाकाल का रूप धारण करने वाले सोनू ने बताया कि काशी में होने वाले आयोजनों में उन्हें 61 हजार रुपये मिलते हैं। वहीं, बाहर जाने पर सवा लाख रुपये तक वह लेते हैं। वह अब तक यूपी के अलावा महाराष्ट्र, बिहार, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में आयोजित कार्यक्रमों में भाग ले चुके हैं। हर जगह उनके महाकाल के स्वरूप की ही मांग रहती है।

तैयार होने में लगते हैं चार घंटे
इंटर तक की शिक्षा और बीएचयू से संगीत में डिप्लोमा कर चुके सोनू ने बताया कि काशी में निकलने वाली रामलीला की शोभायात्रा से उन्हें स्वांग रचाने की प्रेरणा मिली। महाकाल के रूप में तैयार होने में तीन से चार घंटे लगते हैं और छह से आठ घंटे तक इसी स्वरूप में रहते हैं। सबसे खास बात है कि स्वांग रचाने वाले कलाकार अपना मेकअप भी खुद ही करते हैं।

आकर्षण में है मूंछों का डांस
महाकुंभ में ''दुकानजी'' के नाम से मशहूर राजेंद्र तिवारी की मूंछों के नृत्य के भी लोग कायल हैं। इनका पूरा शरीर एक जगह स्थापित रहता है और मूंछ की भाव-भंगिमा को आकर्षक रूप से प्रदर्शित करते हैं। दारागंज के रहने वाले दुकानजी बताते हैं कि जब वह 17 साल के थे तब माघ के मेले में एक साधु से मिले। 
 

साधु उन्हें हिमालय पर ले गए और दो महीने तक साथ रखा। जब वह वापस आने लगे तो साधु ने कहा कि अपनी मूंछ मत कटवाना। उसके बाद से दुकानजी ने मूंछ नहीं कटवाई। इनका नाम 1994 में लिम्का बुक, 1995 में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड, 2012 में इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज हुआ है।

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