आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) है. इस बार यह 10 जुलाई को है. इस दिन भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाएंगे, इसलिए इस दिन को देवशयनी एकादशी कहते हैं यानी देवों के शयन की एकादशी. इस दिन व्रत रखा जाता है और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. काशी के ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट के अनुसार, इस एकादशी से ही चातुर्मास प्रारंभ होता है, जिसमें चार माह तक कोई शुभ कार्य नहीं होते हैं. आइए जानते हैं देवशयनी एकादशी की व्रत कथा के बारे में.
देवशयनी एकादशी व्रत कथा
एक बार युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण जी से आषाढ़ शुक्ल एकादशी व्रत के महत्व को
बताने को कहा. तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि इसे देवशयनी एकादशी के नाम से
जानते हैं. एक बार नारद मुनि ने ब्रह्मा जी से आषाढ़ शुक्ल एकादशी के महत्व
और विधि के बारे में पूछा था. वह कथा तुम्हें बताते हैं.
नारद जी के पूछने पर ब्रह्मा जी ने कहा कि नारद, तुमने मनुष्यों के उद्धार के लिए अच्छा प्रश्न किया है. इस व्रत को पद्मा एकादशी भी कहते हैं. इस व्रत को करने से भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न होते हैं. इसकी कथा इस प्रकार से है—
सूर्यवंश में एक महान प्रतापी राजा मांधाता हुए, जो एक चक्रवती राजा थे. वह अपनी प्रजा का पूरा देखभाल करते थे. उनका राज्य धन धान्य से परिपूर्ण था. उनके राज्य में कभी अकाल नहीं पड़ा था.
एक समय की बात है. लगातार तीन साल तक बारिश नहीं हुई और अकाल पड़ गया. अकाल के कारण उनकी प्रजा काफी कष्ट में रह रही थी, वे सभी दुखी थे. अन्न और धान्य की कमी के कारण यज्ञ जैसे धार्मिक कार्य भी बंद हो गए.
प्रजा परेशान होकर राजा के दरबार में पहुंची और कहा कि हे राजन! इस अकाल से चारों ओर हाहाकार मचा हुआ है. बारिश के अभाव में अकाल पड़ गई है. इस वजह से मनुष्य भी मर रहे हैं. इसका कुछ उपाय खोजना होगा.
राजा ने कहा कि ठीक है. वे एक दिन अपने कुछ सैनिकों के साथ जंगल में गए और अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचे और ऋषि को प्रणाम किया. ऋषि ने आने का कारण पूछा, तो राजा ने सबकुछ बताया.
तब अंगिरा ऋषि ने राजा मांधाता को आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी व्रत करने को कहा. इसे व्रत को करने से सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं. तुम अपने सभी मंत्रियों और प्रजा के साथ इस व्रत को करो. समस्या का समाधान हो जाएगा.
ऋषि अंगीरा के सुझाव के अनुसार ही राजा मांधाता ने पूरी प्रजा के साथ देवशयनी एकादशी का व्रत विधिपूर्वक किया. उस व्रत के प्रभाव से वर्षा हुई. अकाल से मुक्ति मिली और फिर से राज्य धन-धान्य से संपन्न हो गया.
देवशयनी एकादशी व्रत के कथा को सुनने से समस्त पापों का नाश होता है. इस व्रत को करने से मोक्ष की भी प्राप्ति होती है.